सरकारें कभी स्वयं बनाती हैं कानून का मज़ाक..तो कभी अदालतों का वास्ता देकर उजाड़ती हैं बस्तियाँ व बाज़ार…
देश के लोकतंत्र की एक बड़ी विशेषता यह है कि इसकी कमान संभाल रहे राजनेता इसे अपने ढंग से परिभाषित कर लेते हैं।मतलब जो भूमि एक सरकार के समय में वैध व कब्जेदारों की ही मानी जाती है।वही भूमि दूसरी सरकार के समय में पूरी तरह से अवैध मानी जाती हैं। संदर्भ में सबसे अज़ब स्थिति तो तब हो जाती हैं जब ऐसे गड़बड़ झाले मामले न्यायालयों के सामने आते हैं।और सरकार की कड़क पैरवी के चलते ऐसी अवैध बस्तियों को न उजाड़े जाने की ताक़ीद अदालतों द्वारा की जाने लगती है।गरीब की ऐसी सभी बस्तियाँ कभी किसी सरकार का वोट बैंक होती हैं तो किसी दूसरे राजनीतिक दल के लिए विफलता की अवैध कालोनियां मात्र होती हैं।
कुमाऊँ प्रवेश द्वार हल्द्वानी में जल्द गरजेगा धामी सरकार का बुल्डोजर..50 हज़ार की आबादी होगी सड़कों पर…
मैं व्यक्तिगत रूप से किसी सरकारी भूमि, नगरनिगम, नगरपालिका व नजूल भूमि पर आमजन द्वारा कब्जेदारी का पुरजोर विरोधी हूँ।पर उत्तराखंड के कुमाऊँ प्रवेश द्वार हल्द्वानी में लगभग 70 एकड़ रेलवे की बताई जा रही भूमि में अवैध अतिक्रमणकारियों को दल बल के साथ बुलडोजर चलाकर खदेड़ा जा रहा है।जिसकी जद में हज़ारों परिवार आ रहे हैं।और लगभग पचास हजार लोगों को सर्द मौसम में यहाँ से पलायन करना पड़ेगा।इसमें बड़ी बात यह है कि यहाँ के निवासी अपनी चार पीढ़ियों से इन आवासों में रह रहे हैं।हैरत की बात यह है कि ये 4365 भवन उच्च न्यायालय नैनीताल के आदेशों से ध्वस्त किये जा रहे हैं।जिस पर कभी देश की सर्वोच्च अदालत ने इन्हें न तोड़े जाने का फ़रमान जारी किया था।
आखिर..हल्द्वानी के अवैध कब्ज़ेदार गुनाहगार और सरोवर नगरी के अवैध कब्जेदार बिल्कुल बेगुनाह कैसे हुए..?
अगर सरोवर नगरी नैनीताल की बात करें तो सात नंबर से लेकर पूरे नगर की पहाड़ियों पर बाहर से आये लोगों ने अवैध निर्माण कर अपने आशियाने बना लिए हैं।जिसे देखने वाला कोई नही है। पिछले वर्ष भोटिया मार्केट,तिब्बती मार्केट व गुरुद्वारे व नैनादेवी मंदिर के सामने फूड प्लाजा व रेस्टॉरेंट्स के लिए भी उच्च न्यायालय का आदेश आया था।जहाँ बैठ कर अपना व्यवसाय करने के लिए स्वीकृत भूमि पर तिब्बतियों व भोटिया समुदाय ने पक्के निर्माण कर अवैध कब्जे कर लिए थे।4×7 व 6×8 के स्वीकृत स्थानों पर आज फिर से 20 फिट तक कब्जे किये जा चुके हैं।पर किसी भी सरकार,नगरपालिका पर कोर्ट की अवहेलना के मामले नही बनते।कम स्थान के चलते यहाँ सैलानियों को नैनादेवी मंदिर जाने में भीड़ व मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। और तो और पिछले ही दिनों उच्च न्यायालय नैनीताल ने पंत पार्क से लेकर गुरुद्वारे व आसपास के भीड़ भरे स्थानों पर फड़ लगाने वाले अवैध कब्जेदारों को केवल 2 घंटे ही अपने फड़ लगाने की इजाज़त दी है।फिलवक्त तो स्थानीय प्रशासन व नगरपालिका ने उन्हें झील के किनारे ही 2 घंटे ही फड़ लगाने की परमिशन दी है। पर तय समय के बाद मैदानी क्षेत्रों से बड़ी संख्या में आये ये अवैध फड़ कारोबारी मॉल रोड सहित बाजारों में कहीं भी अपने फड़ लगा रहे है।इनके लिए बनाए जा रहे वेंडिंग जोन का मामला ठंडे बस्ते में ही प्रतीत होता है।और हो भी क्यों न इन फडों में अधिकतर फड़ नगरपालिका सदस्यों व कर्मचारियों के निकटस्थों के जो है। जिनका सुधलेवा कोई नही है।लेकिन लोकतंत्र में जिसकी गलती पकड़ी जाए केवल वो ही मुज़रिम माना जाता है।इसीलिए हल्द्वानी के अवैध कब्ज़ेदार गुनाहगार और सरोवर नगरी के अवैध कब्जेदार बिल्कुल बेगुनाह हुए…? वास्तविकता में यह झोल न्यायपालिका का कदापि नही है।सरकारें जिस ढंग से मामलों की पैरवी करती हैं और जैसे सुबूत अदालतों में पेश किए जाते हैं फैसले भी उसी के अनुकूल आते हैं।