कराह रहा उत्तराखंड..बिना पारस्थितिकी जाँचे पहाड़ों पर अत्यधिक विकास बन रहा विनाश का कारण…

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कराह रहा उत्तराखंड..पहाड़ों पर पारस्थितिकी के विरुद्ध अत्यधिक विकास बन रहा विनाश का कारण…

आज जोशीमठ में अधिक भू-धंसाव की परिधि में आये भवनों को नेस्तिनाबूद किया जाएगा।हालांकि इस भू-धंसाव पर राजनीतिक दलों द्वारा एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाए जा रहे हैं।अनेक कारण खोजे जा रहे हैं।देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क्योंकि कई बार उत्तराखंड से विशेष लगाव की बात करते हैं।इसीलिए चार धाम के लिए विशेष सड़क प्रोजेक्ट शुरू किए गए हैं जिसमे मानकों के ख़िलाफ़ विस्फोटक के जरिये भारी तोडफ़ोड़ कर मार्ग का चौड़ीकरण कर फोर लेन निर्माण कार्य किये जा रहे हैं।अति उत्साही होकर अत्यधिक निर्माण कार्य किये जाने के चलते हिमालय के प्राकृतिक स्वरूप से भारी छेड़छाड़ की जा रही है।शायद इसीलिए देश की सर्वोच्च अदालत ने जोशीमठ मामले की सुनवाई से मना कर दिया है। जोशीमठ में भू-धंसाव का कारण टनल हो सकती है पर गढ़वाल के अन्य इलाकों में भी जमीन धंसने और मकान में दरारों की आ रही तस्वीरें चिंता का सबब हैं। गढ़वाल के करीब 28 से अधिक गांव जो भू-धंसाव और घरों में दरारें आने से पहले से ही त्रस्त हैं।क्या इन गाँवों में भी ज्यादा अवैध निर्माण हुआ है..? जबकि वास्तविकता में पहाड़ों से पलायन लगातार जारी है।
आपको बता दें कि टिहरी जिले में स्थित नरेंद्रनगर के अटाली गांव में ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे स्टेशन के निर्माण से अटाली गांव के कुछ परिवारों की कृषि भूमि सहित मकानों पर दरारें पड़ी हैं। अटाली गांव की कृषि भूमि पर पिछले कुछ दिनों से डेढ़ फिट तक दरारें पड़ चुकी हैं जिसके चलते गांव के कई घर व कृषि भूमि खतरे की जद में आ चुकी हैं।ग्रामीणों का कहना है कि अटाली गांव में उनकी पुश्तैनी संपत्ति हैं।अब इस स्थिति में वो सब कुछ छोड़कर कहां जायें। उधर उत्तरकाशी में यमुनोत्री नेशनल हाइवे के ऊपर वाडिया गांव के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। वर्ष 2013 की आपदा के दौरान यमुना नदी के उफान पर आ जाने से इस गांव के नीचे कटाव होने लगा था। धीरे-धीरे गांव के घरों में दरार आने लगी।हालांकि संबंध में कुछ ट्रीटमेंट किया भी गया पर यमुनोत्री धाम को जाने वाले एक मात्र नेशनल हाइवे भी धंसने लगा है।यहाँ तक गांव के लिए जाने वाले बिजली सप्लाई के खंभे भी अब तिरछे हो गए हैं। रुद्रप्रयाग जिले के अंतर्गत विकासखंड अगस्त्यमुनी का मरोड़ा गांव भी ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन की भेंट चढ़ा है। इस गांव में भी बड़ी दरारें पड़ चुकी हैं और अब गांव पूरी तरह से खाली हो रहा है। पीड़ित ग्रामीणों को विस्थापन के नाम पर मात्र कुछ धनराशि दी जा रही है। लेकिन पीड़ित परिवार इसे नाकाफी बता रहे हैं। पीड़ितों का कहना है कि इतनी कम धनराशि में वह मकान बनाएंगे या जमीन खरीदेंगे। पौड़ी के सौड गांव में रेलवे लाइन प्रोजेक्ट से 30 से अधिक घरों पर दरारें पड़ी है। ग्रामीणों ने सरकार को कई बार इस बाबत जानकारी दी है लेकिन अभी तक किसी अधिकारी ने उनकी सुध नहीं ली है।

बस्तियों,गाँवों के धीरे-धीरे समाप्त होने से स्थानीय पुरानी सभ्यताएं,संस्कृति पर गहराने लगे संकट के बादल..आखिर जिम्मेदार कौन…?

कुलमिलाकर उत्तराखंड में गढ़वाल मंडल के हालात बद से बदत्तर होते चले जा रहे हैं।ऐसा लगता है कि अत्यधिक विकासपरख योजनाओं के चलते कहीं हम उक्त पहाड़ी क्षेत्रों पर ज्यादती तो नही कर रहे हैं।क्षेत्र की पारस्थितिकी की जाँच किये बिना कहीं अंधाधुंध विकास लादा तो नही जा रहा है।उत्तराखंड के पहाड़ ज्यादा कच्चे मतलब रेत,मिट्टी से बने ज्यादा पुराने नही हैं।सरकारों द्वारा बड़ी सोच दर्शा कर यहाँ किये जा रहे बड़े प्रोजेक्ट्स कहीं प्रदेश के विनाश का कारण तो नही बन रहे हैं..?  जोशीमठ में घरों और सड़कों पर दरारे क्यों पड़ रही है इसे लेकर कई तरह की संभावना जताई जा रही है।राज्य सरकार द्वारा अवैध खनन से लेकर अवैध निर्माण तक जमीन धंसने की वजह बताई जा रही है। सरकार ने इसके लिए एक जांच कमेटी भी बना दी है। यहाँ बड़ा सवाल यह उठता है कि अगर बरसों से अस्तित्व में रही ये बस्तियाँ ही मिटा दी जाएंगी,भू-धंसाव के चलते शहर,गांव व कृषि भूमि सब नष्ट हो जाएगी तो फिर इस विकास के क्या मायने…? इस पर राज्य व केंद्र सरकारों को मंथन अवश्य करना होगा। एन.टी.पी.सी के प्रोजेक्ट्स पर फिलवक्त रोक लगा दी गई है।पर इस आपदा के मूल कारणों से आमजन का ध्यान हटाने के लिए सरकार अवैध खनन व अवैध निर्माण को दोष दे रही है।क्या यह गलत नही है। जल्द ही अगर यहाँ पारस्थितिकी के हिसाब से विकास कार्य नही तय किये गए तो स्थिति “आगे दौड़..पीछे छोड़” वाली कहावत सरीखी हो जाएगी।