@. ऐतिहासिक…
★. आखिर कौन था ये अफसर जिसने बग्वाल रोकने की, की थी हिमाकत…
★. देवीधुरा में पुरातन काल से है बग्वाल खेलने की परंपरा…..
रिपोर्ट (चन्दन सिंह बिष्ट) “स्टार खबर”
देवीधुरा :
मां बाराही धाम देवीधुरा में आषाड़ी कौतिक में होने बाला बगवाल मेला उत्तर भारत के मेलों में एक अलग पहचान बनाए हुए है। कल सोमवार 19 अगस्त को होने वाली बग्वाल को देखने के लिए देश के कोने-कोने से लाखों लोग यहां पहुंचते हैं।7000 फीट की ऊंचाई पर स्थित मां बाराही के धाम का जिक्र साहसिक शिकारी और लेखक जिम कॉर्बेट ने अपनी “मैन इटर ऑफ कुमाऊं” नामक पुस्तक में किया है। कहा जाता है कि अंग्रेजी हुकूमत के समय पत्थरयुद्ध को रोकने के लिए रबड़ या गोबर की गेंद से बग्वाल खेलने का आदेश दिया गया था। आदेश देने वाले तत्कालीन अंग्रेज अधिकारी जब बीमारियों से ग्रस्त हुए तो उन्होंने दैवीय शक्ति को मानते हुए अपना आदेश वापस लिया। लाखों लोगों की आस्था का प्रतीक मां बाराही धाम में प्राचीन काल से बग्वाल की परंपरा चली आ रही है। यह परंपरा कब से शुरू हुई इस बारे में कोई भी सटीक अनुमान नहीं है। मंदिर के पीठाचार्य कीर्ति बल्लभ जोशी की मानें तो यह परंपरा महाभारत काल से चली आ रही है।पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक चारों खाम चम्याल, लमगड़िया खाम, वालिक खाम और गहड़वाल खाम के लोगों में हर साल नर बलि देने की प्रथा थी। जानकार बताते हैं चम्याल खाम की एक वृद्धा के इकलौते पोत्र की नरबलि देने की बारी आई तो वृद्धा ने मां की उपासना की। वृद्धा की तपस्या से प्रसन्न हो माता ने नरबलि का विकल्प खोजने की बात कही। चारों खामों की सहमति से एक व्यक्ति के बराबर रक्त बहाकर मां की पूजा करने की परंपरा शुरू हुई।