@ पहाड़ के जनसंघर्षों का जनकवि… ★पहाड़ की पीड़ा को स्वर देने वाले जनक गिर्दा…. ★ठेठ पहाड़ी स्वर योद्धा गिरीश चन्द्र तिवाऱी ‘गिर्दा’…. ★रिपोर्ट –(सुनील भारती )”स्टार खबर ” नैनीताल….

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@ पहाड़ के जनसंघर्षों का जनकवि…

★पहाड़ की पीड़ा को स्वर देने वाले जनक गिर्दा….

★ठेठ पहाड़ी स्वर योद्धा गिरीश चन्द्र तिवाऱी ‘गिर्दा’….

★रिपोर्ट –(सुनील भारती )”स्टार खबर ” नैनीताल….

नैनीताल–उत्तराखण्ड के पटकथालेखक, निदेशक, गीतकार, गायक, जनकवि थे। उत्तराखण्ड राज्य आंदोलन के दौरान उन्होंने कविताओं व गीतों के जरिए उत्तराखंड के लोगों को एक जुट करने का भरसक प्रयास किया जिसमे उन्हें सफलता भी मिली। गिरीश चंद्र तिवारी ने उत्तराखंड के लिए निस्वार्थ भाव से कार्य किया । गिरीश तिवारी गिर्दा का जन्म 10 सिंतबर 1945 को उत्तराखंड ,अल्मोड़ा जिले के ज्योली नामक गाँव में हुआ था । गिरीश तिवारी जी के पिता का नाम हंसादत्त तिवारी था। और माता जी का नाम जीवंती देवी था। उन्होंने अपना प्रारंभिक शिक्षा अल्मोड़ा में ही की। गिर्दा की आरंभिक शिक्षा अल्मोड़ा से पूर्ण की। और 12 की शिक्षा नैनीताल से प्राप्त की । गिरीश तिवारी गिर्दा, घर से निकलने के बाद पीलीभीत, बरेली में भी रहे,उसके बाद लखनऊ और अलीगढ़ में जाकर रिक्शा चलाने का कार्य किया। कुछ समय लखनऊ में अस्थाई नौकरी करने के बाद,उन्होंने गीत और नाटक प्रभाग में स्थाई नौकरी की इस दौरान उनका लखनऊ आकाशवाणी में भी आना जाना लगा रहा। लखनऊ में उन्होंने पंत,फैज,निराला,ग़ालिब, कवियों एवं लेखकों पर अध्ययन किया। 1968 में गिर्दा ने कुमाऊनी कविताओं का संग्रह शिखरों के स्वर प्रकाशित किया। इसके बाद तो गिर्दा ने ढेरों कुमाऊनी कविताये लिखने के साथ साथ उन्हें कविताओं को स्वरबद्ध भी किया। अंधेर नगरी चौपट राजा, अंधायुग, नगाड़े खामोश हैं, धनुष यज्ञ जैसे अनेक नाटकों का निर्देशन किया। 1974 से ही उत्तराखंड में आंदोलन शुरू हो गया था ।चिपको,आंदोलन,नीलामी विरोध में आंदोलन । इन आंदोलनों में गिर्दा ने एक जनकवि का रूप धारण कर ,अपनी कविताओं से इन आंदोलनों को नई दिशा दी। नीलामी विरोध आंदोलन में गिर्दा की कविता ,” आज हिमालय तुमन कै धतोंछो , जागो हो जागो मेरा लाल “1974 में उत्तराखंड आंदोलन और 1984 में नशा नही रोजगार दो आंदोलनों में गिरीश तिवारी गिर्दा के गीतों ने जनमानस को जागरूक कर दिया।1994 में उत्तराखंड राज्य आंदोलन में जनकवि गिरीश तिवारी गिर्दा के गीत “धरती माता तुम्हारा ध्यान जागे ” से आंदोलन की शुरुआत होती थी और हम लड़ते रया भुला हम लड़ते रूलो गीत तो जैसे उत्तराखंड राज्य आंदोलन की जान बन गया। जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दूनी में गीत ने आंदोलन को नई धार दे दी। गिरीश तिवारी गिर्दा वो फक्कड़ कवि थे, उत्तराखंड गढ़वाली भाषा के प्रसिद्ध गायक नरेंद्र सिंह नेगी जी के साथ उन्होंने ,कई बार जुगलबंदी से विदेशों तक धूम मचाई। गिर्दा को गीत ,कविता से इतना प्रेम था,कि उस समय जाती पाती से जकड़े उत्तराखंड में हुड़का केवल दलित समाज के लोग ही बजाते थे, लेकिन गिर्दा की तो अलग विचार धारा थी उन्होंने,हुड़का धारण कर समाज के सामने एक नई मिसाल पेश की । गिरीश चंद्र तिवारी गिर्दा की मृत्यु 22 अगस्त 2010 को पेट मे अल्सर की बीमारी के कारण हुई। गिरीश तिवारी गिर्दा के प्रसिद्ध कुमाऊनी कविताएं :-
उत्तराखंड मेरी मातृभूमि .. मातृभूमि मेरी पितृ भूमि..
हम लड़ते रया भुला … हम लड़ते रूलो….
ओ जैता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनि में।धरती माता तुम्हारा ध्यान जागे… ऊँचे आकाश तुम्हारा ध्यान जागे।सारा पानी चूस रहे हो नदी समुंदर लूट रहे हो।