@ हिन्दू धर्म में जरूरी है पितरों का पूजन…
★समर्पण और कृतज्ञता की इसी भावना से श्राद्ध पक्ष प्रेरित है, जो जातक को पितर ऋण से मुक्ति मार्ग दिखाता है….
★रिपोर्ट- (हर्षवर्धन पांडे ) “स्टार खबर” नैनीताल…
नैनीताल – समर्पण और कृतज्ञता की इसी भावना से श्राद्ध पक्ष प्रेरित है, जो जातक को पितर ऋण से मुक्ति मार्ग दिखाता है। हिंदू धर्म के अनुसार, प्रत्येक शुभ कार्य के प्रारंभ में माता पिता, पूर्वजों को नमस्कार या प्रणाम करना हमारा कर्तव्य है। श्रीमद् भागवत के अनुसार जन्म लेने वाले की मृत्यु और मृत्यु को प्राप्त होने वाले का जन्म निश्चित है। जीवन-मरण का ये चक्र प्रकृति का नियम है। सनातनी संस्कृति का लोक विश्वास है कि व्यक्ति अपने जीवन काल में किये कर्मों के अनुसार पाप और पुण्य का भागी होता है। अच्छे कर्मों से उसे स्वर्ग लोक तथा बुरे कामों से नरक भोगना पड़ता है। भावनात्मक लगाव के कारण पितर लोक में रहने वाले पितरों की याद उनके वंशजों को अवश्य आती है और पितृऋण चुकाने के लिये उनकी श्रद्धा सदैव बनी रहती है। इसी निमित्त श्राद्ध किया जाता है। देवताओं से पहले पितरों को प्रसन्न करना अधिक कल्याणकारी है। आश्विन कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से अमावस्या तक का समय श्राद्ध पक्ष कहलाता है। इस वर्ष 29 सितंबर 2023 से 14 अक्तूबर 2023 तक पितृ पक्ष है ।
इस अवधि के 16 दिन पितरों अर्थात श्राद्ध कर्म के लिए विशेष रूप से निर्धारित किए गए हैं। कहा गया है पितृ पक्ष में किए गए कार्यों से पूर्वजों की आत्मा को शांति प्राप्त होती है तथा कर्ता को पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है। आत्मा की अमरता का सिद्धांत तो स्वयं वासुदेव श्री कृष्ण गीता में उपदेशित करते हैं। आत्मा जब तक अपने परम-आत्मा से संयोग नहीं कर लेती, तब तक विभिन्न योनियों में भटकती रहती है और इस दौरान उसे श्राद्ध कर्म में संतुष्टि मिलती है। पितरों की पूजा करके मनुष्य आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, श्री, पशु, सुख और धन-धान्य प्राप्त करता है। श्राद्ध -कर्म में एक हुए चावल दूध और तिल को मिश्रित करके पिंड बनाने की परंपरा है। पिंड का अर्थ है एक शरीर । यह एक पारंपरिक विश्वास है, जिसे विज्ञान भी मानता है कि हर पीढ़ी के भीतर माता , पिता दोनों में पहले की पीढ़ियों के समन्वित गुणसूत्र उपस्थित होते हैं। चावल के पिंड जो पिता, दादा परदादा और पितामह के शरीरों का प्रतीक हैं, आपस में मिलकर फिर अलग बांटते हैं। जल में दूध, जौं , चावल ,चंदन ,गंगाजल डालकर तर्पण कार्य करते हैं। आत्मा की तृप्ति के लिए तर्पण किया है। स्वर्गस्थ आत्माओं की तृप्ति किसी पदार्थ से खाने पहनने आदि की वस्तु से नहीं होती क्योंकि स्थूल शरीर के लिए भौतिक उपकरणों की आवश्यकता पड़ती है। मरने के बाद स्थूल शरीर समाप्त होकर केवल सूक्ष्म शरीर ही रह जाता है। सूक्ष्म शरीर को भूख, प्यास, सर्दी , गर्मी आदि की आवश्यकता नहीं रहती। उसकी तृप्ति का विषय कोई खाद्य पदार्थ या हाड़ मांस वाले शरीर के लिए उपयुक्त उपकरण नहीं हो सकते । सूक्ष्म शरीर में विचरना, चेतना भावना की प्रधानता रहती है । इसलिए उसमें उत्कृष्ट भावनाओं से बना अंतःकरण या वातावरण ही शांतिदायक होता है । श्राद्ध के अनेक वैज्ञानिक पहलू भी मौजूद हैं। श्रीमद्भागवत में भी स्पष्ट रूप से बताया गया है कि जन्म लेने वाले की मृत्यु और मृत्यु को प्राप्त होने वाले का जन्म निश्चित है। यह प्रकृति का शाश्वत नियम है। शरीर नष्ट होता है, मगर आत्मा कभी भी नष्ट नहीं होती है। वह पुनः जन्म लेती है और बार-बार जन्म लेती है। इस पुनः जन्म के आधार पर ही कर्मकांड में श्राद्ध आदि कर्म का विधान निर्मित किया गया है। मान्यता है कि पितृ प्रसन्न होने पर जीवन में आने वाली परेशानियों को दूर करते हैं और जीवन में सुख समृद्धि प्रदान करते हैं। ज्ञान और मोक्ष की प्रदाता भूमि गया में पितरों को पिंडदान देने की पुरातन परंपरा के अनुसार पितृपक्ष का विशेष महत्व है। आश्विन कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से शुरू होकर अमावस्या तक की अवधि को पितृपक्ष माना जाता है। देश के हरिद्वार, गंगासागर, कुरुक्षेत्र, चित्रकूट, पुष्कर सहित कई स्थानों में भगवान पितरों के श्रद्धापूर्वक किए गए श्राद्ध से उन्हें मोक्ष प्रदान कर देते हैं, लेकिन गया में किए गए श्राद्ध की महिमा विशेष है । कहा जाता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम और सीताजी ने भी राजा दशरथ की आत्मा की शांति के लिए गया में ही पिंडदान किया था। सही मायनों में पितृपक्ष में पितरों को देने और बद्ध कर्म करने से उनको मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दौरान न केवल पितरों की मुक्ति के लिए श्राद्ध किया जाता है, बल्कि उनके प्रति अपना सम्मान प्रकट करने के लिए भी किया जाता है। पितृपक्ष में पूर्वक अपने पूर्वजों को जल देने का भी विधान है।
श्राद्ध की मान्यता महाभारत काल से भी जुड़ी है। गरुड़ पुराण में भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर के संवाद बताए गए हैं।महाभारत काल में तातश्री भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को पितृपक्ष में श्राद्ध और उसके महत्व को बताया था। भीष्म पितामह ने बताया था कि अत्रि मुनि ने सबसे पहले श्राद्ध के बारे में महर्षि निमि को ज्ञान दिया था। अपने पुत्र की आकस्मिक मृत्यु से दुःखी होकर निमि ऋषि ने अपने पूर्वजों का आह्वान करना शुरू कर दिया था। इसके बाद पूर्वज उनके सामने प्रकट हुए और कहा निमि, आपका पुत्र पहले ही पितृ देवों के बीच स्थान ले चुका है। चूंकि आपने अपने दिवंगत पुत्र की आत्मा को खिलाने और पूजा करने का कार्य किया है, यह वैसा ही है जैसे आपने पितृ यज्ञ किया था। उस समय से श्राद्ध को सनातन धर्म का महत्वपूर्ण अनुष्ठान माना जाता है। इसके बाद से महर्षि निमि ने भी श्राद्ध कर्म शुरू किए और उसके बाद से सारे ऋषि-मुनियों ने श्राद्ध करना शुरू कर दिए थे ।कुछ मान्यताएं बताती हैं कि युधिष्ठिर ने कौरव और पांडवों की ओर से युद्ध में मारे गए सैनिकों के अंतिम संस्कार के बाद उनका श्राद्ध किया था।अगर कारणवश पितरों के निधन की तिथि पता नहीं है, तो ऐसे में पितृ अमावस्या के दिन उनके नाम से श्राद्ध कर सकते हैं। इस दिन सभी के नाम से श्राद्ध किया जाता है। पितृपक्ष के दौरान प्रतिदिन पितरों के लिए तर्पण करना चाहिए। तर्पण के लिए आपको कुश, अक्षत्, जौं और काला तिल का उपयोग करना चाहिए। तर्पण करने के बाद पितरों से प्रार्थना करें और गलतियों के लिए क्षमा मांगें। पितृपक्ष में पितरों की आत्मा की शांति के लिए जो भी श्राद्ध कर्म करते हैं, उन्हें इस दौरान बाल और दाढ़ी नहीं कटवाना चाहिए। साथ ही इन दिनों में घर पर सात्विक भोजन ही बनाना चाहिए। तामसिक भोजन से पूरी तरह में परहेज करना चाहिए। जो भी हो पितरों के प्रति श्रद्धा भाव से उन्हें याद किये जाने की परम्परा आज तक चल रही है जो हमारी आदर्श परम्परा है।
*एक नजर : पितृ पक्ष 2023 श्राद्ध की तिथियां*
पूर्णिमा-प्रतिपदा का श्राद्ध – 29 सितंबर 2023
द्वितीया तिथि का श्राद्ध – 30 सितंबर 2023
तृतीया तिथि का श्राद्ध – 1 अक्तूबर 2023
चतुर्थी तिथि श्राद्ध- 2 अक्तूबर 2023
पंचमी तिथि श्राद्ध – 3 अक्तूबर 2023
षष्ठी तिथि का श्राद्ध – 4 अक्तूबर 2023
सप्तमी तिथि का श्राद्ध – 5 अक्तूबर 2023
अष्टमी तिथि का श्राद्ध – 6 अक्तूबर 2023
नवमी तिथि का श्राद्ध – 7 अक्तूबर 2023
दशमी तिथि का श्राद्ध – 8 अक्तूबर 2023
एकादशी तिथि का श्राद्ध – 9 अक्तूबर 2023
मघा तिथि का श्राद्ध – 10 अक्तूबर 2023
द्वादशी तिथि का श्राद्ध – 11 अक्तूबर 2023
त्रयोदशी तिथि का श्राद्ध – 12 अक्तूबर 2023
चतुर्दशी तिथि का श्राद्ध – 13 अक्तूबर 2023