@स्पिन के चमकते सितारे बिशन सिंह बेदी……
★ मैदान पर उतरते और कलाई से गेंद की दिशा को मोड़ देते थे…….
★उनकी गेंद की फ्लाइट को देखकर दुनिया के अच्छे बल्लेबाज भी चकमा खा जाते थे…..
★ रिपोर्ट – ( हर्षवर्धन पांडे) “स्टार खबर ” नैनीताल…..
उनकी स्पिन में गजब का जादू था। जब वो मैदान पर उतरते और कलाई से गेंद की दिशा को मोड़ देते थे तो दुनिया के बल्लेबाजों का मान मर्दन कर देते थे। उनके सामने बैटिंग करने पर खिलाडियों के पहले ही पसीने छूट जाया करते थे। उनकी गेंद की फ्लाइट को देखकर दुनिया के अच्छे बल्लेबाज भी चकमा खा जाते थे। अगर कहा जाए उनकी गिनती बाएं हाथ के दुनिया के महानतम स्पिनर के रूप में की जाती थी तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होनी चाहिए। सही मायनों में अगर कहा जाए तो इरापल्ली प्रसन्ना, बीएस चंद्रशेखर और एस. वेंकटराघवन की तिकड़ी के साथ उन्हें भारतीय स्पिन गेंदबाज़ी में नई क्रांति लाने का श्रेय दिया जाता है। पचास के दशक में हमारे पास वीनू मांकड और सुभाष गुप्ते जैसे विश्वस्तरीय स्पिनर थे लेकिन सत्तर और अस्सी के दशक में भारत की स्पिन को दुनिया के पटल पर अगर किसी ने नई पहचान दिलाई तो उसमें बिशन सिंह बेदी ही थे। जिस दौर में बेदी ने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण किया उस समय दुनिया भर में तेज़ गेंदबाज़ों का जलवा हुआ करता था। होल्डिंग, रॉबर्ट्स, गार्नर, मार्शल, क्लार्क , लिली , टॉमसन सरीखे रफ़्तार के लम्बे तेज गेदबाजों के सामने सही से भी बैटिंग भी नहीं की जा सकती थी । उस दौर में बिशन सिंह बेदी ने अपनी कलाई के जादू के आसरे दुनिया के पटल पर खास पहचान बनाई। बिशन सिंह बेदी ने भारत के खिलाफ 67 टेस्ट मैच खेले और 28.71 के शानदार औसत से 266 विकेट हासिल किए। इस दौरान वो भारत की ओर से सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले गेंदबाज भी रहे। उनके पास लूप और स्पिन के साथ-साथ क्रीज पर बल्लेबाजों को मात देने के लिए खुद के पिटारे में बेहतर आर्म स्पीड रिलीज पॉइंट्स में फ़्लाइट भी मौजूद थी ।
भारतीय क्रिकेट में स्पिन को नई दिशा देने में बिशन सिंह बेदी के योगदान को कभी भुलाया ही नहीं जा सकता। अपनी फिरकी से उन्होनें दुनिया भर के बल्लेबाज़ों को अपने कौशल से बाँधा, साथ ही घरेलू क्रिकेट दिल्ली की ओर से खेलते हुए अपने दो रणजी ट्रॉफ़ी खुद के नेतृत्व में जीते। यही नहीं 370 के प्रथम श्रेणी के मैचों में रिकॉर्ड 1560 विकेट हासिल कर वह एक समय सबसे ज़्यादा विकेट लेने वाले खिलाड़ी भी बने। वह भारत के लिए टेस्ट क्रिकेट में 200 विकेट लेने वाले पहले गेंदबाज थे। बिशन सिंह बेदी भारतीय टेस्ट क्रिकेट के इतिहास में पहले बाएं हाथ के स्पिनर बने थे जिन्होंने 266 विकेट लेने का कारनामा महज 67 मैच में कर दिखाया जो एक बड़ी उपलब्धि उस दौर में थी जब क्रिकेट में आज के दौर के जैसे संसाधन नहीं हुआ करते थे ।अपने खेल के जरिये उन्होंने दुनिया की विभिन्न टीमों को खेल के सही मायने सिखाये ।
बिशन सिंह बेदी की अलहदा शख़्सियत उन्हें महान खिलाडियों की ऐसी श्रेणी में रखती है जो खेल भावना से खेल खेला करते थे। एक बार 1976 के सबीना पार्क में टेस्ट मैच चल रहा था जब वेस्ट इंडियन कप्तान क्लाइव लॉयड ने ऑस्ट्रेलिया के लिली-टॉमसन से त्रस्त होकर तेज़ गेंदबाज़ी को अपना हथियार बनाया और भारतीय बल्लेबाज़ों को मैदान पर अपने निशाने पर लिया तो तो बिशन सिंह बेदी ने विरोध में पारी घोषित कर दी। उनका स्पष्ट कहना था कि ऐसा खेल उन्हें मंज़ूर नहीं है जिसमें इस तरह की आक्रामकता हो। उस टेस्ट को अब भी इस विरोध के लिए याद किया जाता है। इस घटना ने सिखाया बेदी अपने उसूलों पर चलने वाले एक बेहतर इंसान थे और बेख़ौफ़ बोलने में माहिर थे ।
बिशन सिंह का जन्म 25 सितंबर 1946 को अमृतसर पंजाब में हुआ था। बेदी ने भारत के लिए 1966 में टेस्ट डेब्यू किया और वह अगले 13 साल तक टीम इंडिया के लिए सबसे बड़े मैच विनर साबित हुए। गेंदबाजी के अलावा बिशन सिंह बेदी के अंदर बेहतरीन नेतृत्व की काबिलियत भी थी । बिशन सिंह बेदी को 1976 में टीम इंडिया का कप्तान नियुक्त किया गया और उन्होंने 1978 तक टीम इंडिया की कमान संभाली। बिशन सिंह बेदी ने 22 टेस्ट मैचों में टीम इंडिया की कप्तानी की। बिशन सिंह बेदी को ऐसे कप्तान के तौर पर जाना जाता है जिन्होंने टीम के अंदर लड़ने की क्षमता पैदा की और अनुशासन को लेकर नए बैंच मार्क स्थापित किए। बिशन सिंह बेदी को भारतीय टीम की कप्तानी करने का भी मौका मिला था। उन्हें 1976 में यह जिम्मेदारी सौंपी गई थी। बेदी को महान क्रिकेटर मंसूर अली खान पटौदी की जगह कप्तान बनाया गया था। बतौर कप्तान उन्हें पहली जीत वेस्टइंडीज के खिलाफ पोर्ट ऑफ स्पेन में 1976 के दौरे पर मिली थी। कप्तान के तौर पर बिशन सिंह बेदी ने 1976 में उस समय की सबसे मजबूत टीम वेस्टइंडीज को उसी की धरती पर जाकर टेस्ट सीरीज में मात दी। इसके बाद इंग्लैंड के खिलाफ घरेलू मैदान पर टेस्ट सीरीज में 3-1, ऑस्ट्रेलिया दौरे पर टेस्ट सीरीज में 3-2 और पाकिस्तान दौरे पर टेस्ट सीरीज 2-0 से मिली हार के बाद उन्हें कप्तानी से हटा दिया गया था। उनके बाद सुनील गावस्कर कप्तान बने ।
भारत के लिए 67 टेस्ट मैच में उन्होंने 266 विकेट लिए। उन्होंने 15 बार पारी में पांच विकेट लेने का कारनामा किया और एक बार मैच में 10 विकेट भी लिए। वहीं, 10 वनडे मैच में उन्होंने सात विकेट झटके।बेदी ने भारत के लिए कुल 77 अंतरराष्ट्रीय मैच खेले थे। इस दौरान उन्होंने 273 विकेट झटके । बेदी को भारतीय टेस्ट इतिहास के पुरोधा बेहतरीन स्पिनरों में आज भी गिना जाता है। बेदी ने भारत के लिए 1966 से 1979 तक टेस्ट क्रिकेट खेला था। बेदी ने 1969–70 में कोलकाता टेस्ट में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ एक पारी में 98 रन देकर सात विकेट लिए थे। यह एक पारी में उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन रहा। वहीं, मैच की बात करें तो 1977–78 में पर्थ के मैदान पर ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 194 रन देकर कुल 10 विकेट झटके थे। उन्होंने टेस्ट में इकलौता अर्धशतक 1976 में कानपुर टेस्ट में न्यूजीलैंड के खिलाफ लगाया था।बिशन सिंह बेदी भारतीय क्रिकेट इतिहास के इकलौते ऐसे स्पिनर रहे , जिन्होंने अपने पूरे प्रथम श्रेणी क्रिकेट में 1560 विकेट लिए। बेदी ने दो उपविजेता रहने के अलावा, 1978-79 और 1979-80 में दिल्ली को प्रतिष्ठित रणजी ट्रॉफी खिताब भी दिलाया। इंग्लैंड में काउंटी क्रिकेट में नॉर्थम्पटनशायर के लिए भी उनका कार्यकाल सफल रहा। 1972 और 1977 के बीच क्लब के लिए 102 मैचों में, बेदी ने 20.89 के औसत के साथ 434 विकेट हासिल किए, जो इंग्लिश काउंटी क्रिकेट सर्किट में किसी भारतीय द्वारा सबसे अधिक है। बिशन सिंह बेदी के नाम 60 ओवरों के वनडे फॉर्मेट में सबसे किफायती स्पेल डालने का विश्व रिकॉर्ड है। बेदी ने ईस्ट अफ्रीका के खिलाफ 1975 में 12 ओवर के अपने स्पेल में सिर्फ 6 दिए थे। इस दौरान उन्होंने 8 मेडन ओवर निकाले जबकि एक विकेट भी लिय था।
क्रिकेट को अलविदा कहने के बाद भी बिशन सिंह बेदी का जुड़ाव इस खेल के लिए खत्म नहीं हुआ। लंबे समय तक बिशन सिंह बेदी ने खुद को इस खेल के साथ जोड़े रखा। अपने खेल करियर के बाद, बेदी ने युवा क्रिकेटरों को कोचिंग देना शुरू कर दिया, जिसमें मनिंदर सिंह और मुरली कार्तिक उनकी नर्सरी से निकले खिलाड़ी थे जिन्होंने भारत के झंडे दुनिया में अपनी गाइडबाजी से गाढ़े। उन्होंने घरेलू क्रिकेट में पंजाब, दिल्ली और जम्मू-कश्मीर टीमों को भी कोचिंग दी, जिसमें पंजाब ने 1992-93 में रणजी ट्रॉफी जीती। नब्बे के दशक में वो कुछ समय के लिए भारतीय टीम के मैनेजर भी नियुक्त किये गए । वह खेल से जुड़े सभी मामलों पर एक मुखर, निडर और निडर आवाज थे । बेदी ने क्रिकेट की दुनिया में बतौर कमेंटेटर भी पहचान बनाई। कोच के तौर पर भी बिशन सिंह बेदी लंबे समय तक क्रिकेट के साथ जुड़े रहे । इतना ही नहीं भारत को स्पिन डिपार्टमेंट में मजबूत बनाए रखने के लिए बिशन सिंह बेदी ने नए खिलाड़ियों को ट्रेनिंग दी और भारतीय क्रिकेट के लिए अंतिम समय तक अहम योगदान देते रहे। बतौर भारत के कप्तान, कोच ,चयनकर्ता के तौर पर उनके भारतीय क्रिकेट के प्रति योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। उन्हें 1969 में अर्जुन पुरस्कार, 1970 में पद्म श्री और 2004 में सी.के. नायडू लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
क्रिकेट के क्षेत्र में बिशन पाजी नाम बहुत बड़ा है। उनकी खेल की हर बारीकी पर तेज नजर रहती थी और खिलाडियों को भी आगे बढ़ने को प्रेरित करती थीं। उनके निधन से भारतीय क्रिकेट जगत में एक ऐसा शून्य भर गया है, जिसे भर पाना कठिन होगा । उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी क्रिकेट की सेवा के लिए लगा दी और अंतिम सांस तक इसी खेल के लिए जिए। उनका व्यक्तित्व क्रिकेट के प्रति एक अलग प्रकार चेतना से भरा हुआ था। क्रिकेट की गहरी समझ उनमें साफ दिखती थी। क्रिकेट पर बोलते हुए वो एक संत जैसा ज्ञान देते थे जो गहराई के साथ हर किसी खिलाड़ी के जीवन में उतर जाता था। मेरे जैसे पत्रकारों के लिए वे हमेशा क्रिकेट में महान हीरो की तरह रहे हैं जिन्होंने खेल को न केवल जिया बल्कि अपनी विशेषताओं से खुद को हर जगह साबित किया । उनके साथ चाय पर चर्चा करते हुए बैठना, चर्चा करना हमेशा अच्छा लगता था । वे मुझे खेल पर लिखने के लिए हमेशा नए विचार देते थे। अंतिम बार कोरोना से पहले मैं उनके साथ दिल्ली के एयरपोर्ट स्थित लेमन ट्री होटल में एक कार्यक्रम के दौरान साथ बैठा था जहाँ उनके साथ क्रिकेट पर लम्बी चर्चा हुई। उस कार्यक्रम के दौरान भी उन्होनें मिलने-जुलने से उन्होंने परहेज नहीं किया और मुलाक़ात में गर्मजोशी दिखाते हुए अपने हाथों से मुझे चाय पिलाई ।उनकी उस मुलाक़ात से क्रिकेट के पुराने दौर और नए दौर के बदलावों की आहट को मैंने करीब से महसूस किया। उन्होंने अपने दौर के टेस्ट मैचों और आज के आईपीएल की चमक की तुलना खुलकर करते हुए कहा इंडियन प्रीमियर लीग मुनाफे का धंधा है। मुनाफा मनोरंजन से जुटाया जाता है, तो फिल्म अभिनेताओं ,अभिनेत्रियों और कारोबारियों को इसमें लिया गया । क्रिकेट का तत्व कहीं हल्का पड़ गया लेकिन सेलेब्रिटियों के चेहरे काम आएंगे। अमेरिका के एनबीए व बेसबॉल की व्यावसायिक लोकप्रियता से काफी प्रभावित होकर पूंजी बटोरने के सारे तत्व वहां से लिए। मल्टीप्लेक्स आपकी जेब कब खाली कर देते हैं? और कैसे कर देते हैं? आप सोचते ही रह जाते हैं लेकिन आईपीएल क्रिकेट का मुनाफा कमाने का समीकरण ही ऐसा है। इतना सीधा सपाट और खरा खरा बोलने वाले खिलाड़ी मैंने आज तक नहीं देखे।
कोरोना के बाद जब भी यदा-कदा उनसे बात हुई तो वे अस्वस्थ ही रहे और इस दौरान उन्हें एक घुटने की सर्जरी से भी गुजरना पड़ा जिसके बाद लोगों से मिलना जुलना कम हो गया फिर भी उन्होनें जल्द मिलने का भरोसा जगाया । पाजी का पूरा जीवन क्रिकेट की एक पाठशाला से कम नहीं था ऐसा उनके साथ मिलने और क्रिकेट के विभिन्न प्रसंगों पर चर्चा करते हुए मुझे लगा। उनसे मिलने की मेरी कसक अधूरी ही रह गई । शायद अब ऐसे दुनिया के महान स्पिनर से मैं कभी नहीं मिल पाऊँगा। उनके निधन के बाद भारतीय क्रिकेट जगत में एक ऐसी रिक्तता उभर गयी है जिसकी भरपाई कर पाना इतना आसान नहीं है। उनके साथ बिताए समय ने मेरे क्रिकेट के प्रति ज्ञान को समृद्ध किया लेकिन अब उनकी यादें ही हमारा संबल हैं।