@ अखंड भारत के शिल्पी ‘ सरदार पटेल …..
★ लौह पुरुष के नाम से जाने जाने वाले सरदार वल्लभभाई पटेल….
★रिपोर्ट ( हर्षवर्धन पाण्डे ) ” स्टार ख़बर “नैनीताल,…..
हमारे देश की आजादी तथा देश के एकीकरण में सरदार वल्लभभाई पटेल के योगदान को हम नहीं भुला सकते है। सरदार ने न केवल क्रांतिकारी की भांति अंग्रेजी हुकूमत का विरोध किया बल्कि आजाद हिन्द को एकजुट करने में बड़ी भूमिका निभाई। लौह पुरुष के नाम से जाने जाने वाले सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को एक समृद्ध कृषक परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम झवेर भाई था जो खुद एक सैनिक थे। इनकी माता लाडवा देवी थी । पटेल बचपन से ही शिक्षा में होनहार विद्यार्थी थे। 22 वर्ष की आयु में इन्होनें न केवल अपनी शिक्षा पूर्ण की बल्कि लन्दन में जाकर बैरिस्टर की उपाधि भी प्राप्त की। सरदार वल्लभ भाई पटेल ने देश को ब्रिटिश सरकार के क़ब्जे से मुक्त करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने विभिन्न आंदोलनों में आमजनमास को एकजुटकरने का न केवल बीड़ा उठाया बल्कि एक कुशल नेतृत्व भी दिया । जब वल्लभ भाई पटेल के व्यक्तित्व में महात्मा गांधी जी का गहरा प्रभाव पड़ा। उन्होंने गांधीजी की विचारधाराओं की मुक्त कंठ से प्रशंसा की और इसका पालन करना शुरु कर दिया। उन्होंने हमेशा ब्रिटिश सरकार और इसके कठोर कानूनों का विरोध किया। गांधी जी के विचारधाराओं और ब्रिटिश सरकार के प्रति घृणा ने उन्हें आजादी के लिए भारतीय संघर्ष में भाग लेने के लिए प्रेरित किया।
सही मायनों में सरदार बल्लभ भाई पटेल राष्ट्रीय एकता के अग्रदूत थे। आज़ादी के आंदोलन में किसानों और युवाओं को जोड़ने के साथ ही उसे सुनियोजित गति देने का काम उन्होनें बखूबी किया। यही नहीं आज़ादी से पहले वीपी मेनन के साथ मिलकर उन्होनें राज्यों में बंटे भारत को एक करने का अभूतपूर्व कार्य भी किया था। देश की छोटी- छोटी 565 रियासतों का भारतीय संघ में एकीकरण कर अखंड भारत के सपने को पूरी दुनिया में उन्होनें ही प्रस्तुत किया। भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पटेल जी पहले गृह मंत्री और उप प्रधान मंत्री बने। सरदार पटेल ने लगभग 562 रियासतों का सफलतापूर्वक एकीकरण किया।
सरदार पटेल शब्दों की नकल करने वाले व्यक्ति नहीं थे। उन्होंने कई शाही परिवारों के लिए हर संभव रियायतें बढ़ाईं, उन्होंने न केवल राज्यों के परिग्रहण को सुरक्षित करने का प्रबंधन किया, बल्कि चरणबद्ध तरीके से प्रशासन के परिवर्तन का निरीक्षण भी किया। इसे उन्होंने “भारत का एकीकरण” का नाम दिया।महात्मा गांधी ने सत्य, अहिंसा पर आधारित जिस सत्याग्रह का मार्ग प्रशस्त किया, उसको व्यवहार में लाने और उसके आधार पर देश –भर की जनता को एकजुट करने का श्रेय सरदार पटेल को ही दिया जाता है। स्वयं गांधी जी ने 1930 के कराची अधिवेशन में कहा भी था कि जवाहरलाल नेहरू विचारक हैं और सरदार पटेल कार्य करने वाले एक बेहतरीन इंसान हैं।
खेड़ा सत्याग्रह के दौरान सरदार पटेल गांधी जी के बहुत करीब आए। उसी दौर में उन्होनें कोट , पैंट और हैट को छोड़कर धोती और कुर्ता पहनना शुरू कर दिया था। खेड़ा उस दौर में भीषण सूखे की चपेट में था। पटेल ने किसानों का साथ देते हुए उनके लिए अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। सक्रिय राजनीति में इसी सत्याग्रह से उनकी शुरुआत हुई लेकिन इसका महत्व इस अर्थ में अधिक है कि पटेल के इस सत्याग्रह के आसरे ही राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन में किसानों की शक्ति का उदय हुआ। सरदार पटेल के ही नेतृत्व में सत्याग्रह के सामने अंततः अंग्रेज़ सरकार को झुकना पड़ा और उस बरस किसानों को कर्ज में काफी राहत दी गई।
पटेल ने ही आज़ादी के आंदोलन में किसानों के साथ ही युवाओं को जोड़ने का बड़ा कार्य भी किया। 28 सितंबर 1921 को अहमदाबाद में विद्यार्थियों की एक सभा को संबोधित करते हुए उन्होनें कहा कि स्वदेशाभिमान और स्वाभिमान चाहने वाले सभी छात्रों को सरकारी कालेजों और स्कूलों को छोड़ असहयोग आंदोलन में शिरकत करनी चाहिए। उन्होनें कहा कि आज़ादी के लिए संघर्ष की दुदुंभी बज रही है। लड़ाई छिड़ गई है। ऐसे समय में मैं क्या करूंगा या मेरा क्या होगा जैसे विचारों पर ध्यान न देकर सबको स्वाधीनता आंदोलन के लिए सहयोग करना चाहिए। राष्ट्रीय आंदोलन में पटेल के नेतृत्व में हुए बारदोली आंदोलन की विशेष भूमिका है। 1928 में गुजरात के बारदोली में सत्याग्रह इसलिए किया गया कि प्रांतीय सरकार ने किसानों के लगान में 30 प्रतिशत की वृद्धि कर दी थी। पटेल ने इस लगान का खुलकर विरोध किया और अंग्रेजी हुकूमत की नाक में दम कर दिया । उनके नेतृत्व में हुए सत्याग्रह आंदोलन को कुचलने के लिए अंग्रेज़ सरकार ने हर संभव प्रयास किए लेकिन अंत में विवश होकर अंग्रेज़ सरकार को किसानों की बड़ी मांगों के सामने झुकना पड़ा। सरदार पटेल के नेतृत्व में हुए इस सत्याग्रह आंदोलन के सफल होने के बाद वहाँ की महिलाओं ने बल्लभ भाई पटेल को ‘सरदार’ की उपाधि प्रदान की और पटेल राष्ट्रीय स्तर पर देश में नायक के तौर पर उभरे ।
सरदार पटेल ने किसानों को अंग्रेज़ सरकार द्वारा उन पर रखे गए भारी करों का विरोध करते हुए स्वयं के राज के लिए प्रेरित किया। किसान संघर्ष और राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम के अंतर्संबंधों की व्याख्या बारदोली किसान संघर्ष के संदर्भों में गांधी जी ने ठीक ही की है कि सरदार पटेल द्वारा किया किया गया इस तरह का हर संघर्ष, हर कोशिश हमें स्वराज के करीब पहुंचा रहा है। यह सच भी है कि सरदार पटेल का लौह नेतृत्व ही ऐसा था ,जिसमें देश का आम नागरिक स्वाधीनता के लिए निरंतर प्रेरित हुआ। सही मायनों में कहा जाए तप सरदार पटेल बहुमुखी व्यक्तित्व के धनी थे। लक्ष्य के प्रति समर्पित उनकी राष्ट्रभक्ति ऐसी थी, जिसमें बड़े संकल्पों से सदा ही सफलताएँ मिलती रहीं। उनमें कहीं कोई बनावटीपन नहीं था। न ही अपने को स्थापित करने में उनकी कोई बड़ी भूमिका थी। मातृभूमि के प्रति समर्पण उनकी रग -रग में देख अजा सकता था। भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को वैचारिक रूप में एक नयी दिशान देने का काम उन्होनें बखूबी किया । विरोधी के दिलों को जीतना भी सरदार पटेल को बखूबी आता था। स्वतन्त्रता मिलने के साथ ही देशी रियासतों को भारतीय संघ में शामिल कर उन्होनें इतिहास में एक अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया। हालांकि शुरुआत में रियासतों के एकीकरण को लेकर तमाम राजा उनसे नाराज थे लेकिन उनकी राष्ट्रभक्ति और देश के लिए ही सब कुछ करने की मंशा से बाद में ऐसे सभी राजा उनके गहरे मित्र हो गए थे। जब सरदार पटेल का निधन हुआ तो अनेक राजा ये कहते हुए रोए कि उनका मित्र और रक्षक चला गया।
यह सरदार पटेल ही थे, जिन्होनें हैदराबाद और जूनागढ़ के मामले में व्यावहारिक रवैया अपनाते हुए भारत में इन्हें मिलाने में कोताही नहीं बरती और कड़ी कार्यवाही करने से भी नहीं चूके। इसी तरह से ये दोनों रियासतें आज भारत की हैं। चीन की मित्रता को भी उन्होनें हमेशा संदेह की नजर से देखा। राजनीति से अधिक राष्ट्रहित उनके लिए सर्वोपरि था। पटेल जब 1950 में अंतिम बार हैदराबाद गए तो वहाँ उन्हें मान पत्र प्रदान करते हुए प्रशंसा की गई। पटेल ने तब कहा था मुझे मानपत्र देने का अभी कोई समय नहीं है। जब आदमी दुनिया छोड़कर चला जाता है, असल मानपत्र तो उसके बाद मिलता है क्योंकि कोई आदमी आखिरी दिन तक कोई गलती नहीं करे, तब उसकी इज्जत रहती है इसलिए हमें ईश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए कि आखिरी दम तक हम शुद्ध और निस्वार्थ भाव से जनता की सेवा करते रहें। देश के एकीकरण में अपन श्रेष्ठ योगदान देश के कारण इन्हें लौहपुरुष भी कहते हैं। जिस प्रकार जर्मन के एकीकरण में बिस्मार्क ने अपनी योजना के अनुसार कार्य किया तथा देश में रियासतों को मिलाया। उसी प्रकार भारत में सरदार वल्लभभाई पटेल ने योजनाबद्ध रूप से देश का विलय किया जिस कारण इन्हें भारत का बिस्मार्क भी कहते है। पहली बार गांधीजी ने इन्हें लौहपुरुष के नाम से संबोधित किया। सरदार गांधीवादी विचारधाराओं से बहुत प्रभावित थे और अहिंसा धर्म का पालन करते थे. उन्होंने असहयोग आंदोलन, नागरिक अवज्ञा आंदोलन और सत्याग्रह आंदोलन सहित कई स्वतंत्रता आंदोलनों का समर्थन किया। उन्होंने न केवल इन आंदोलनों में भाग लिया बल्कि बड़ी संख्या में लोगों को इसमें भाग लेने के लिए भी प्रेरित किया। सरदार वल्लभभाई पटेल ने एकता और अखंडता पर सबसे ज्यादा जोर दिया। उन्होंने कई कठिन परिश्रम के फलस्वरूप सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त कई रियासतों का एकीकरण किया जिससे उन्हें भारतीय समाज का निर्माण करने में सफलता मिलीइसलिए वर्ष 2014 से सरदार वल्लभभाई पटेल की जंयती यानि 31 अक्टूबर को ‘राष्ट्रीय एकता दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
स्टैच्यू ऑफ यूनिटी सरदार वल्लभभाई पटेल की सबसे बड़ी प्रतिमा है। इसकी लम्बाई 182 मीटर (597 फीट) और आधार सहित जोड़ा जाए तो इसकी लम्बाई 240 मीटर (790 फीट) है। नरेन्द्र मोदी के पीएम कार्यकाल में इस प्रतिमा का निर्माण किया गया। स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के निर्माण में 3000 करोड़ रुपये की लागत आई। सरदार वल्लभभाई पटेल की जयंती हर वर्ष 31 अक्टूबर को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाते हैं। पटेल ने भारत राष्ट्र के निर्माण में बड़ी भूमिका निभाई । आज जो भारत देश हम देख रहे हैं, वह सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा किए गए प्रयासों का ही परिणाम है। 1950 में ख़राब स्वास्थ्य की वजह से सरदार वल्लभ भाई पटेल का निधन हुआ। सरदार पटेल बहुत जल्द ही दुनिया से चले गए लेकिन सरदार का देश के प्रति समर्पण, त्याग, मजबूत निर्णय हमेशा ही देशवासियों को उनकी याद दिलाते रहेंगे। उन्होनें अपनी पूरी ताकत देश की स्वधीनता और बाद में अखंड भारत के निर्माण में लगा दी थी। सही मायनों में वो सच्चे लौहपुरुष थे।