@पुराणों में दुर्गा को आदिशक्ति माना गया है..
★दुर्गा शब्द की व्याख्या…
★प्रो. ललित तिवारी
नैनीताल – ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी। दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते ।
दुर्गा मां में महा शक्ति समाही है ।
सर्वमङ्गल माङ्गल् ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यंम्बके गौरि नारायणि नमोस्तु ते॥
वेदों में दुर्गा का उल्लेख है, किन्तु उपनिषद में देवी “उमा हैमवती” (उमा, हिमालय की पुत्री) का वर्णन किया गया है। पुराणों में दुर्गा को आदिशक्ति माना गया है। दुर्गा को शिव की पत्नी आदिशक्ति का स्वरूप कहा जाता है ।शिव की पराशक्ति को प्रधान प्रकृति, गुणवती माया, बुद्धितत्व की जननी तथा विकार रहित कहा जाता है।दुर्गा को दुर्गति नाशिनी कहा जाता है।दुर्गा शब्द के बारे में कहा जाता है कि इसमें द अक्षर दैत्यनाशक, उ अक्षर विघ्ननाशक, रे रोगनाशक, ग कार पापनाशक और आ कार शत्रुनाशक है।
शरणागत दीनार्तपरित्राण परायणे सर्वस्यार्ति हरे देवि नारायणि नमोस्तु ते॥
नवरात्र संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ है ‘नौ रातों का समय’। इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति/देवी की पूजा की जाती है वैसे तो वर्ष में चार बार नवरात्र आते हैं किंतु चैत्र तथा शारदीय नवरात्र को दिव्य एवम पवित्र माना गया है।
दुर्गा के नौ रूपों में पहली शैलपुत्री, दूसरी ब्रह्मचारिणी, तीसरी चंद्रघंटा, चौथी कूष्मांडा, पांचवी स्कंध माता, छठी कात्यायिनी, सातवीं कालरात्रि, आठवीं महागौरी और नौवीं सिद्धिदात्री है।
शक्ति को समर्पित ये नौ दिन मां की आराधना को समर्पित है ।
मां के नौ रूप में नौ दर्शन होते है। प्रथम
शैल पुत्री मां दुर्गा का प्रथम रूप है शैल पुत्री। पर्वतराज हिमालय के यहां जन्म होने से इन्हें शैल पुत्री कहा जाता है। मां के प्रथम पूजन से भक्त सदा धन-धान्य से परिपूर्ण पूर्ण रहते हैं।
दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी है जो भक्तों और साधकों को अनंत कोटि फल प्रदान करने वाली है। इनकी उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की भावना जागृत होती है। तृतीय रूप
चंद्रघंटा है जो पापों से मुक्ति देती है । वीरता के गुणों में वृद्धि करती है। स्वर में दिव्य अलौकिक माधुर्य का समावेश एवम आकर्षण बढ़ता है। चतुर्थ रूप कुष्मांडा- है जो सिद्धियों, निधियों को प्रदान करती है तथा समस्त रोग-शोक दूर कर आयु व यश में वृद्धि प्रदान करती है। पांचवा रूप स्कंदमाता , मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता परम सुखदायी है। माँ अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं को पूर्ण करती है। छटा रूप कात्यायनी है। छठे दिन इनके पूजन से अद्भुत शक्ति का संचार होता है। कात्यायनी साधक को दुश्मनों का संहार करने में सक्षम बनाती है। सप्तम
कालरात्रि- है जिनकी पूजा नवरात्रि की सप्तमी के दिन मांं काली की आराधना का विधान है। इनकी पूजा-अर्चना करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है तेज देने वाली व दुश्मनों का नाश करती है। अष्टमी को
महागौरी के पूजन का विधान है। इनकी पूजा सारा संसार करता है। महागौरी की पूजन करने से समस्त पापों का क्षय होकर चेहरे की कांति बढ़ती है। सुख में वृद्धि होती है। नवमी को पूजित मां का नवा रूप
सिद्धिदात्री- है जो जातक को अणिमा, लघिमा, प्राप्ति,प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व, सर्वकामावसांयिता, दूर श्रवण, परकाया प्रवेश, वाक् सिद्धि, अमरत्व, भावना सिद्धि सहित समस्त नव-निधियों को प्रदान करती है ।
मां दुर्गा के इन रूपो को साधक कमल, चंपा, चमेली, गुलाब, मोगरा, गेंदा और जूही के फूल देवी मां को बेहद पसंद हैं। लेकिन गुड़हल का लाल फूल मां दुर्गा को सबसे अधिक पसंद है।
मां दुर्गा को ही आदि शक्ति, परम भगवती, और परब्रह्म के साथ अंधकार और अज्ञानता के विरुद्ध लड़ने की शक्ति माना गया है । मां दुर्गा ही शांति, समृद्धि, और धर्म की रक्षा करती है ।
मां दुर्गा की आठ भुजाएं आठ तरह की शक्तियों दर्शाती हैं. ये शक्तियां हैं – शरीर-बल, विद्याबल, चातुर्यबल, धनबल, शस्त्रबल, शौर्यबल, मनोबल, और धर्म-बल का प्रतीक है । मां
दुर्गा के पास अखंडनीय आंतरिक शक्ति विद्यमान है और भक्तों को ऊर्जा प्रदान करती है ।मां दुर्गा के पास इंद्रदेव का दिया वज्र , कुल्हाड़ी या फरसा भगवान विश्वकर्मा का तथा भगवान विष्णु का
सुदर्शन चक्र शदमिल है जो मां की शक्ति दिखाते है ।
सृष्टि स्तिथि विनाशानां शक्तिभूते सनातनि। गुणाश्रेय गुणमये नारायणि नमो स्तु ते ॥
मां दुर्गा प्रकृति में औषधीय पौधों में भी शामिल है
माँ शैलपुत्री हरड़ ,टर्मिनालिया चेबुला जो हिमावती है तथा पथया , हरितिका , अमृता , हेमवती , कायस्थ , चेतकी , और श्रेयसी , सात प्रकार की रोग नाशक है। दूसरी माँ ब्रह्मचारिणी ब्राह्मी ,बाकोपा मनेरी है जो आयु व याददाश्त में वृद्धि कर रक्त विकारो को दूर कर स्वर को मधुर बनाती है इसलिए इसे सरस्वती भी कहाँ जाता है ।तीसरी माँ चंद्रघंटा चंदू सुर लेपिडियम सतीवुम है जो औषधि मोटापा दूर करने में लाभदायक है इसलिए इसे चर्म हन्ति भी कहा जाता है । चतुर्थ
माँ कुष्मांडा पेठा ,बेनिकासा हिस्पीड़ा जिससे पेठा मिठाई बनती है ।इसे कुम्हड़ा भी कहते है जो रक्त विकार दूर कर पेट साफ़ करने में सहायक है मानसिक रोगों में भी लाभप्रद है । पांचवी माँ स्कंदमाता – अलसी , लिनम यूसती सेटमम जो वात , पित , व कफ रोगों की नाशक औषधि है । छटा रूप
माँ कात्यायनी मोइया ,मधुका लेटिफोलिया में शामिल है इसे अम्बा , अम्बालिका , व अम्बिका भी कहते है तथा कफ , पित , व गले के रोगों का नाश करती है । सातवा रूप
माँ कालरात्रि जो नागदौन , यूफोर्बिया तिथि मलोदेस में है जो सभी प्रकार के रोगों में लाभकारी है और मन एवं मष्तिष्क के विकारो को दूर करती है ।
अठवा रूप माँ महागौरी – तुलसी ,ओसिमम सैंक्टम है जो सफेद तुलसी , काली तुलसी , मरुता , दवना , कुठे , रक , अर्जक , और षट् पत्र , के रूपो में जानी जाती है । यह पवित्र तथा रक्त को साफ कर ह्रदय रोगों का नाश करती है । मां दुर्गा का नवा रूप माँ सिद्धिदात्री जो शतावरी अस्परागस रेसमोसा जिसे नारायणी सतावरी भी कहते है यह बल , बुद्धि , एवं विवेक के लिए बहुत लाभदायक है। मां के नौ रूपों में पूरा ब्रह्मांड शमिल है ये प्रकृति तथा उसकी शक्ति को दरसाते है। मां दुर्गा की आराधना मानवीय परंपरो की भक्ति उसकी शक्ति को पाने के आराधना ही नवरात्र है। शारदीय नवरात्र में भक्ति माहौल और बड़ जाता है जब रामलीला इससे जुड़ जाती है तो विजया दशमी दानव महिषासुर तथा राक्षस रावण के अंत को विजय दशमी के रूप में विजय दिवस का उल्लास बन जाते है ।मां दुर्गा से यही प्रार्थना की सभी जीव पर उनकी कृपा बनी रहे सभी निरोगी रहे तथा मानवीय गुणों का विकास हो सके।
नवरात्रि व्रत का उद्देश्य है इंद्रियों का संयम और आध्यात्मिक शक्ति का संचय। वस्तुत: नवरात्र अंत:शुद्धि महापर्व है। भक्ति एवं शक्ति की बयार है नवरात्रि। इसिलिए कहा गया है
या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।