@देश की आन, बान और शान तिरंगे झंडे के जनक पिंगली वैंकैया की कहानी…….
★अंग्रेजों की गुलामी से आज़ाद होने के लिए असंख्य लोगों ने अपना बलिदान दिया….
★रिपोर्ट ( हर्षवर्धन पांडे )” स्टार खबर” नैनीताल.
अंग्रेजों की गुलामी से आज़ाद होने के लिए असंख्य लोगों ने अपना बलिदान दिया। उनमें से अनेक लोगों को आज हम विस्मृत कर चुके हैं । देश की आन, बान और शान तिरंगा किस तरह वजूद में आया ये बात भी शायद आज गिने चुने लोगों को याद होगी। तिरंगे झंडे का जब भी जिक्र आएगा तो पिंगली वैंकैया के नाम का नाम स्मरण किए बिना शायद वो अधूरा रहे । भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की एक बैठक 1921 में विजयवाड़ा में हुई तो उसमें राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने पिंगली वैंकैया द्वारा तैयार किए गए राष्ट्रीय ध्वज के चित्रों की जानकारी दी । इसी बैठक में पिंगली द्वारा बनाए गए राष्ट्रीय ध्वज की डिजाइन को महात्मा गांधी ने सबसे पहले मान्यता दी ।
राष्ट्रीय ध्वज की डिजाइन तैयार करने वाले पिंगली का जन्म आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले की दीवी तहसील के भताला पेनमरु गाँव में 2 अगस्त 1878 को हुआ था । प्रारम्भिक शिक्षा भटाला पेनमरु एवं मछलीपट्टनम से प्राप्त करने के बाद 19 वर्ष की उम्र में वो मुंबई चले गए। वहाँ जाकर उन्होनें सेना में नौकरी कर ली जहां से उनको दक्षिण अफ्रीका भेज दिया गया । 1899 से 1902 के बीच उन्होनें अफ्रीका के बायर युद्ध में भाग दिया वहीं पर उनकी मुलाक़ात महात्मा गांधी से हुई और वे उनके विचारों से बहुत अधिक प्रभावित हुए । स्वदेश वापस लौटने पर मुंबई में गार्ड की नौकरी में लग गए। इसी बीच मद्रास में प्लेग के चलते कई लोगों की मौत हो गई इससे उनका मन बहुत अधिक व्यथित हुआ और उन्होनें वह नौकरी छोड़ दी। वहाँ से मद्रास में प्लेग रोग उन्मूलन में इंस्पेक्टर के पद पर तैनात हो गए । पिंगली की संस्कृत, उर्दू और हिन्दी भाषा में अच्छी पकड़ थी। इसके साथ ही वो भू विज्ञान और कृषि के भी अच्छे जानकार थे। बात 1904 की है जब जापान ने रूस को हरा दिया। इस समाचार को सुनकर वो इतना प्रभावित हो गए कि उन्होनें जापानी भाषा सीख ली।
इसी दौर में महात्मा गांधी का खेड़ा सत्याग्रह भी चल रहा था। इस आंदोलन ने पिंगली के मन पर खासा प्रभाव छोड़ा। उसी दौरान उन्होनें अमरीका से कंबोडिया नामक कपास के बीज का आयात किया और इस बीज को भारत के कपास के बीज के साथ अंकुरित कर भारतीय संकरित कपास का बीज तैयार किया जिसे (उनके इस शोध कार्य के लिए ) बाद में वैंकैया कपास के नाम से भी जाना जाने लगा। उधर ब्रिटिश सरकार ने पिंगली वैंकैया को रायल एग्रीकल्चर सोसायटी आफ लंदन के सदस्य के रूप में मनोनीत कर उनका गौरव बढ़ाया ।1906 में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस का अधिवेशन कलकत्ता में हुआ जिसकी अध्यक्षता दादा भाई नौराजी ने की थी । इस सम्मेलन में दादाजी ने पिंगली के कार्यों की सराहना की। बाद में उन्हें राष्ट्रीय काँग्रेस का सदस्य मनोनीत कर दिया गया । काँग्रेस के इस अधिवेशन में यूनियन जैक फहराया गया जिसे देखकर पिंगली वैंकैया का मन द्रवित हो उठा। उसी दिन से वे भारतीय राष्ट्रीय ध्वज की संरचना में लग गए। 1916 में उन्होनें ए नेशनल फ्लैग आफ़ इंडिया नामक पुस्तक प्रकाशित की जिसमें उन्होनें राष्ट्रीय ध्वज के 30 नमूने प्रकाशित किए थे। पाँच साल बाद भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की बैठक 1921 में विजयवाड़ा में हुई तो उसमें गांधी जी ने सभी को पिंगली के द्वारा तैयार राष्ट्रीय ध्वज के चित्रों की जानकारी दी।
इसी बैठक में गांधी जी ने पिंगली के द्वारा बनाए गए राष्ट्रीय ध्वज को मान्यता दी। इस संदर्भ में महात्मा गांधी के ‘यंग इंडिया ’ में अपने संपादकीय में ‘अवर नेशनल फ़्लैग ’ शीर्षक से लिखा राष्ट्रीय ध्वज के लिए हमें बलिदान देने को तैयार रहना चाहिए। मछलीपट्टनम के आंध्र कालेज के पिंगली ने देश के झंडे के संदर्भ में एक पुस्तक भी प्रकाशित की जिसमें उन्होनें राष्ट्रीय ध्वज से सम्बन्धित अनेक चित्र प्रकाशित किए ।गांधी जी ने अपने संपादकीय में आगे लिखा ‘जब मैं विजयवाड़ा के दौरे में था उस दौरान पिंगली ने मुझे हरे और लाल रंगों से बने बिना चरखे वाले कई चित्र बनाकर दिये थे। हर झंडे की रूप रेखा पर उन्हें कम से कम 3 घंटे तो लगे ही थे। मैंने उन्हें एक झंडे के बीच में सफ़ेद रंग कि पट्टी डालने कि सलाह दी जिसका उद्देश्य था कि सफ़ेद रंग सत्य व अहिंसा का होता है। उन्होनें इसे तुरंत मान लिया।’ इसके बाद पिंगली द्वारा तैयार किया गया झण्डा जन जन के बीच लोकप्रिय हो गया।