@ उत्तराखंड के त्यौहार संक्रांति (घी त्यार) …. ★किसान ईश्वर से अच्छी फसल की प्रार्थना में करते है … ★रिपोर्ट — ( सुनील भारती )” स्टार खबर” नैनीताल …..

43

@ उत्तराखंड के त्यौहार संक्रांति (घी त्यार) ….

★किसान ईश्वर से अच्छी फसल की प्रार्थना में करते है …

 

★रिपोर्ट — ( सुनील भारती )” स्टार खबर” नैनीताल …..

 

 

उत्तराखंड के कुमाऊँ और गढ़वाल में एक त्यौहार है घी संक्रांति, जो भादो माह की एक गते संक्रांति को सूरज कर्क राशि से सिंह राशि में प्रवेश करता है, और इसी दिन घी संक्रांति मनाये जाने की परंपरा आज भी बदस्तूर जारी है ।घी संक्रांति के दिन सभी लोग अपने सर, कोहनी और घुटनो में घी लगाते और खाते है। चरक सहिंता के अनुसार घी खाने के तमाम फायदे है। इससे शरीर की कही व्याधियां दूर होती है। कफ और पित्त दोष दूर होते है और इसके सेवन से बुद्धि तेज और याददाश्त क्षमता बढ़ती है।

उत्तराखंड में घी त्यार मनाए जाने का कारण ये भी है कि
किसान अपने कुल इष्टदेवी, देवताओं को याद कर अच्छी फसल की प्रार्थना में करते है । और पूर्वजों द्वारा प्रचलित शुभ रिवाज के तहत अपने घर के दरवाजो में अनाज की बालियों को गोबर से चिपकाते हैं। जिससे उनके घरों में पर्याप्त मात्रा में अन्न की भरमार रहे। इस त्योहार में खाने के लिए बेडू रोटी खायी जाती है। जो मास की बनी होती है और उसके साथ एक कटोरे में घी गरम कर के बेडू रोटी को उसमे डुबो के खाया जाता है।
इस दिन पिनालू के बंद पत्तियों (गाबो) की सब्जी बनाई जाती है।
त्योहार के पीछे मान्यता है कि घी या घी से बने पकवान ही खाए जाते है ,कहावत ये भी है जो इस दिन घी नहीं खाता वो अगले जन्म में गनेल बनता है मान्यता ये भी है दिन घी खाने से ग्रहो के अशुभ प्रभाव से बचा जाता है। जीवन में अशुभ ग्रहों नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता है।