@राष्ट्रीय संगोष्ठी… ★कुमाऊँ विश्वविद्यालय के यूजीसी-एमएमटीटीसी सभागार में जलवायु अनुकूल” पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित… ★जलवायु परिवर्तन अब केवल चर्चा का विषय नहीं, बल्कि एक वास्तविक संकट… ★रिपोर्ट- (सुनील भारती ) “स्टार खबर” नैनीताल…

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नैनीताल। कुमाऊँ विश्वविद्यालय के यूजीसी-एमएमटीटीसी सभागार में आज एक महत्वपूर्ण विषय “उत्तराखंड में जलवायु अनुकूल” पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गई। ट्राई-इम्पैक्ट ग्लोबल और कुमाऊँ विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग, डी.एस.बी. परिसर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस एकदिवसीय कार्यक्रम में विविध क्षेत्रों के विशेषज्ञों ने अपने शोध और अनुभव साझा किए।

कार्यक्रम का शुभारंभ कुमाऊँ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. डी.एस. रावत, दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. पी.सी. जोशी और कला संकायाध्यक्ष प्रो. रजनीश पांडे, संयोजक मनोज भट्ट व प्रो० ज्योति जोशी द्वारा दीप प्रज्वलन कर किया गया। तत्पश्चात् कुमाऊँ विश्वविद्यालय का कुलगीत प्रस्तुत किया गया।
संगोष्ठी संचालक संदीप चोपड़ा जी के कुशल संचालन में कार्यक्रम मुख्य अतिथियों के स्वागत से प्रारंभ हुआ। मनोज भट्ट ने प्रो. डी.एस. रावत, प्रो. पी.सी. जोशी, प्रो. रजनीश पांडे और प्रो. ज्योति जोशी को स्मृति चिन्ह एवं शॉल प्रदान कर सम्मानित किया गया व इसी क्रम में प्रो. ज्योति जोशी द्वारा ट्राई इंपैक्ट के मुख्य कार्यकारी अध्यक्ष मनोज भट्ट को स्मृति चिन्ह एवं शॉल प्रदान कर किया गया।

स्वागत उद्बोधन में प्रो. ज्योति जोशी ने कहा, “जलवायु परिवर्तन अब केवल चर्चा का विषय नहीं, बल्कि एक वास्तविक संकट है, जिसका प्रभाव उत्तराखंड में गहराई से महसूस किया जा रहा है, विशेषकर महिलाओं के दैनिक जीवन पर।”
ट्राई-इम्पैक्ट ग्लोबल के प्रतिनिधि श्री मनोज भट्ट ने बताया कि उनके संगठन ने उत्तराखंड में जलवायु अनुकूलन की 360 से अधिक सफल कहानियों का विस्तृत दस्तावेजीकरण किया है। उन्होंने कहा, “हमारी योजना इन अनुभवों को एक डिजिटल मैप पर प्रदर्शित करने की है, जिससे यह मूल्यवान ज्ञान शोधार्थियों, नीति-निर्माताओं और उद्यमियों तक पहुँच सके।”
मुख्य वक्ता प्रो. पी.सी. जोशी ने वैश्विक परिप्रेक्ष्य में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर अपनी गहन अंतर्दृष्टि साझा करते हुए कहा, “आज अमेरिका जैसे विकसित देश भी इस संकट से अछूते नहीं हैं।” उन्होंने हिमालयी क्षेत्रों पर जलवायु परिवर्तन के विशेष प्रभावों का विश्लेषण करते हुए पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक विज्ञान के समन्वय पर बल दिया।
कार्यक्रम के मुख्य आकर्षण के रूप में, कुलपति प्रो. डी.एस. रावत ने जलवायु अनुकूलन और सतत विकास के क्षेत्र में अनुकरणीय प्रयास करने वाले छः प्रतिभाशाली व्यक्तियों – देवेन्द्र सिंह राठी, नेपाल सिंह कश्यप, कार्तिक पवार, आकांक्षा सिंह, नरेंद्र सिंह मेहरा और हिमांशु बिष्ट को सम्मानित किया। प्रो. रावत ने जलवायु अनुकूलन की अत्याधुनिक अवधारणाओं पर चर्चा करते हुए विश्वविद्यालय के बायो-फिशरीज और पटवा-टिशू रिजनरेशन तकनीकों पर प्रकाश डाला।

संगोष्ठी के प्रथम सत्र में छह प्रगतिशील किसानों और उद्यमियों ने अपने नवाचारों को साझा किया। देवेन्द्र सिंह राठी (वासुआखेड़ी, हरिद्वार) – जिन्होंने मल्टी क्रॉपिंग प्रणाली और सोलर एनर्जी पंप के समेकित उपयोग द्वारा कृषि में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया है व नेपाल सिंह कश्यप (रुड़की) – जिन्होंने मत्स्य पालन में सौर ऊर्जा के नवाचारी उपयोग से पारंपरिक पद्धतियों को पर्यावरण अनुकूल बनाया है ने अपने विचार साझा किए। साथ ही कार्तिक पवार (लक्सर, हरिद्वार) ने जैविक और बायोडायनामिक कृषि के माध्यम से रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता घटाने के तरीके बताए। स्वयंभू की सीईओ आकांक्षा सिंह (हरिद्वार )ने ठोस अपशिष्ट प्रबंधन और पुनर्चक्रण के क्षेत्र में अपने प्रयासों का वर्णन किया। नरेंद्र सिंह मेहरा (गौलापार, हल्द्वानी)ने जैविक कृषि, वर्मी कम्पोस्ट और मल्टी क्रॉपिंग के अभिनव प्रयोगों की जानकारी दी, जबकि हिमांशु बिष्ट (गौलापार, हल्द्वानी)ने लिलियम फूलों की खेती और बायोगैस उत्पादन के क्षेत्र में अपने योगदान को साझा किया।

द्वितीय सत्र में विशेषज्ञों ने वनाग्नि प्रबंधन और पारिस्थितिकी संरक्षण पर चर्चा की। प्रो. आशीष तिवारी ने ‘विंटर फायर’ जैसी नई चुनौतियों पर प्रकाश डाला, जबकि प्रो. ललित तिवारी ने बुरांश और काफल जैसी वनस्पतियों के समय से पहले फलने की घटनाओं पर चिंता व्यक्त की। प्रो. अनिल जोशी ने जलवायु परिवर्तन के लोक संस्कृति पर पड़ रहे प्रभावों का विश्लेषण करते हुए ऐपण कला के संरक्षण पर बल दिया। प्रो. एस.एस. सामंत ने वन पंचायतों की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया और कुंदन सिंह विष्ट ने ‘स्मार्ट सूचना प्रणाली’ के विकास पर जोर दिया।

तृतीय सत्र में महिला सशक्तिकरण और पारंपरिक हस्तशिल्प पर ध्यान केंद्रित किया गया। डॉ. किरन तिवारी ने स्व-सहायता समूह ‘चेली आर्ट्स’ के माध्यम से महिलाओं के सशक्तिकरण के प्रयासों का वर्णन किया। डॉ. छाया शुक्ला ने पर्यावरणीय शिक्षा को औपचारिक शिक्षा प्रणाली में शामिल करने की आवश्यकता पर बल दिया, जबकि प्रो. किरन बर्गली ने स्थानीय खाद्य प्रणालियों और बीज विनिमय में महिलाओं की भूमिका पर प्रकाश डाला।
कार्यक्रम का समापन मनोज भट्ट द्वारा सम्मेलन को सफलतापूर्वक संपन्न कराने में सहयोग देने वाले सभी व्यक्तियों ,कुमाऊं विश्वविद्यालय के कुलपति, समाजशास्त्र विभाग तथा यूजीसी MMTTC के सभी सदस्यों व विशेषज्ञों और प्रतिभागियों के प्रति आभार व्यक्त किए जाने से हुआ।
इस अवसर पर प्रो. ज्योति जोशी द्वारा मनोज भट्ट और प्रो. पी.सी. जोशी को आभार पत्र भेंट कर संगोष्ठी का समापन किया गया।

इस अवसर पर विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित शिक्षाविदों की गरिमामयी उपस्थिति रही, जिनमें प्रो. संजय पंत (छात्र कल्याण अधिष्ठाता), प्रो. आर.के. पांडे (सेवानिवृत्त, भूगोल विभाग), प्रो. एस.एस. सामंत (पूर्व निदेशक, हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान, शिमला), प्रो. आशीष तिवारी (वानिकी विभाग), प्रो. ललित तिवारी (वनस्पति विभाग), प्रो. किरण बरगली, प्रो. जीत राम, डॉ. किरण तिवारी, प्रोफेसर चंद्रकला रावत, डॉ. हरिप्रिया पाठक , डॉ० छाया शुक्ला (कम्युनिटी साइंस, जी०बी० पंत कृषि विश्वविद्यालय, पंतनगर) सहित अनेक वरिष्ठ प्राध्यापक शामिल थे। कार्यक्रम में शोध छात्र-छात्राओं ने प्रतिभागिता की।