@स्थापना दिवस.. ★22 मार्च को एरीज मना रहा है अपना स्थापना दिवस… ★रिपोर्ट- (चंदन सिंह बिष्ट ) “स्टार खबर ” नैनीताल…

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नैनीताल। मनोरा पीक, नैनीताल स्थित आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज) आज *22 मार्च* को अपनी स्थापना के 21 वर्ष पूरे कर रहा है। इस अवसर पर एरीज ने एक 4 दिवसीय *स्थापना दिवस समारोह* आयोजित किया है। समारोह की शुरुवात 19 मार्च को हुई जिसमें एरीज के कर्मचारियों ने रक्तदान शिविर के साथ सामाजिक कल्याण का एक नेक कदम उठाया। 20-21 मार्च को आंतरिक विज्ञान-तकनीकी बैठक में संस्थान के वज्ञानिकों और अभियंताओं ने अपने कार्यों पर व्याख्यान देकर चर्चा की और भविष्य की योजनाओं पर विचार मंथन किया। स्थापना दिवस 22 मार्च के दिन शैले हॉल, नैनीताल क्लब में एम्स, नई दिल्ली के प्रख्यात नेत्र सर्जन *पद्म श्री डॉ. जे. एस. तितियाल* तथा एरीज के वैज्ञानिक डॉ. जीवन पांडेय के व्याख्यानों का सार्वजनिक कार्यक्रम होगा। विद्यार्थियों के लिए प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता का आयोजन भी किया गया है। इस अवसर पर दूरबीन से सुरक्षित तरीके से सूर्य पर स्थित काले धब्बे भी दिखाए जाएंगे।

भूतपूर्व उत्तर प्रदेश राजकीय वेधशाला की शुरुवात सन 1954 में वाराणसी में हुई थी, जो सन 1955 में नैनीताल स्थानांतरित हो गई। सन 1972 में 104 सेमी दूरबीन का संचालन शुरू हुआ, जिसने यूरेनस और शनि ग्रहों के वलयों की खोज के साथ साथ खगोल विज्ञान की कई महत्वपूर्ण खोजों में योगदान दिया। सन 2000 में उत्तराखंड के अस्तित्व में आने के बाद संस्थान को राजकीय वेधशाला कहा जाने लगा। यही राजकीय वेधशाला आगे चलकर सन 2004 में विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के अंतर्गत आई और एरीज का जन्म हुआ। पिछले दो दशकों में एरीज ने वेधशाला की वैज्ञानिक विरासत को बढ़ाते हुए एशिया की सबसे बड़ी दूरबीन 3.6 मीटर देवस्थल ऑप्टिकल टेलीस्कोप (डॉट) तथा 4 मीटर अंतर्राष्ट्रीय तरल दर्पण टेलीस्कोप (आईएलएमटी) जैसी अंतर्राष्ट्रीय दूरबीनों की शुरुआत की है। इनसे प्राप्त परिणामों से खगोल विज्ञान के क्षेत्र में भारत के योगदान में उन्नति हुई है। एरीज के वैज्ञानिक तारों, आकाशगंगाओं, ब्लैक होल, सूर्य जैसे विविध प्रकार के खगोलीय पिंडों का अवलोकन कर शोध कार्य करते है।

एरीज के शुरुआत में ही खगोल विज्ञान के साथ वायुमंडलीय विज्ञान का एक नया आयाम भी शुरू हुआ। संस्थान के वैज्ञानिकों ने वैश्विक स्तर पर एक अनूठे वायुमंडलीय रडार के साथ पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील इस हिमालय क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण अध्ययन किए है। हिमालय क्षेत्र में वायु प्रदूषण एवं गुणवत्ता के सर्वाधिक दीर्घकालिक अवलोकन भी एरीज ने ही किए हैं, जो सीधे रूप से पहाड़ी क्षेत्र के जनजीवन पर असर डालते हैं।

दो दशकों की छोटी कालावधि में ही एरीज ने विज्ञान में अपनी छाप छोड़ी है और देवभूमि उत्तराखंड तथा सरोवर नगरी नैनीताल का नाम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उजागर किया है। निकट भविष्य में संस्थान से अंतरिक्ष मलबे की निगरानी भी शुरू की जाएगी। एरीज के निदेशक और वायुमंडलीय वैज्ञानिक डॉ. मनीष कुमार नजा का कहना है कि “एरीज के वैज्ञानिक और शोधार्थी प्रकृति के अनसुलझे पहलुओं को सुलझाने में निरंतर प्रयासरत हैं और मुझे पूरा विश्वास है कि एरीज विज्ञान में आत्मनिर्भर भारत और विकसित भारत को साकार करने में अपना योगदान देता रहेगा”।