@भारतीय ज्ञान परंपरा को सहेजने की जरूरत… ★सरदार भगत सिंह राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, रुद्रपुर में आयोजित हुई राष्ट्रीय संगोष्ठी , भारतीय ज्ञान परंपरा पर मंथन …. ★रिपोर्ट- (हर्षवर्धन पांडे) “स्टार खबर” नैनीताल….

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@भारतीय ज्ञान परंपरा को सहेजने की जरूरत…

★सरदार भगत सिंह राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, रुद्रपुर में आयोजित हुई राष्ट्रीय संगोष्ठी , भारतीय ज्ञान परंपरा पर मंथन ….

★रिपोर्ट- (हर्षवर्धन पांडे) “स्टार खबर” नैनीताल….

उधमसिंह नगर- सरदार भगत सिंह राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, रुद्रपुर में ‘प्राचीन भारतीय ज्ञान प्रणाली एवं पेटेंट’ विषय पर दो दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें वक्ताओं ने भारतीय ज्ञान परंपरा को सहेजने पर बल दिया। भारत पुरातन काल से ही ज्ञान , विज्ञान,आयुर्वेद , योग आदि की विधाओं का ज्ञाता रहा है । आज इस ज्ञान परंपरा को फिर से समझने की जरूरत है। संगोष्ठी में सभी वक्ताओं ने भारत की गौरवशाली प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा की झलक पेश की ।संगोष्ठी के पहले दिन अपने वक्तव्य में कार्यक्रम के मुख्य संयोजक और कालेज की आईपीआर सेल के नोडल अधिकारी प्रो. मनोज के पांडे ने कहा कि पारंपरिक ज्ञान डिजिटल लाइब्रेरी सूत्रों के तमाम यूरोपीय भाषाओं में अनुवाद के बाद कुछ भारतीय ज्ञान की सुरक्षा हो सकी। उन्होनें डिजिटल ज्ञान कोष के आने के बाद 250 के लगभग पेटेंट के रद्द होने की बात भी बताई। संगोष्ठी में कालेज के प्राचार्य ने सेमिनार के सफलता की कामना करते हुए पेटेंट की महत्ता पर प्रकाश डाला वहीं डॉ. आशुतोष भट्ट ने इनोवेशन और इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी के परिप्रेक्ष्य में अपने विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने मानव ने अपने नवाचार और आविष्कारों द्वारा विज्ञान और प्रौद्योगिकी में नए-नए कारणों की खोज की है और इससे हमारे सामने विश्व के तत्वों का विस्तृत अध्ययन आया है। उन्होंने डीआईएच 4.0 के बारे में भी बताया कि उद्योग और नवाचार कैसे एक दूसरे से जुड़े हुए हैं जिसमें आईओटी, इंटरनेट का थान, स्मार्ट कार्यक्रम, और हास इन थे इंडियन हिमालय एनवायरनमेंटल विषय पर विस्तारित बातचीत की गई।डॉ. रतन कुमार ने भी अपना अनुभव और वाइड एडवाइज़ ऑफ वाइड एंड हर्बल इन इंडियन हिमालय एनवायरनमेंटल विषय पर प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि पहाड़ में होने वाले विभिन्न फल जैसे काफल, हिमालयी अकींचन, आदि का उपयोग हम खाने के अलावा भी रंगों और विभिन्न उपादानों में भी प्रयोग कर सकते हैं।

डॉ. भारत पांडे ने पेटेंट के माध्यम से पारंपरिक भारतीय ज्ञान की सुरक्षा के महत्व पर अपने विचार साझा किए। डॉ. पांडेय ने पारंपरिक ज्ञान के मूल्य के बारे में जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर देते हुए पेटेंटिंग के संभावित लाभों पर भी प्रकाश डाला । डॉ. भारत पांडेय ने कहा कि इस कार्यशाला के आयोजन के लिए यूकॉस्ट देहरादून के महानिदेशक प्रो. दुर्गेश पंत, डॉ. डी.पी. उनियाल सर ,हिमांशु गोयल को विशेष धन्यवाद दिया। सेमिनार में डॉ. जयसी पटेल, डॉ. कमला बोरा, डॉ प्रदीप कुमार, डॉ शिलेभ गुप्ता आदि विद्वानों ने भी अपने विचार रखे। संगोष्ठी में महाविद्यालय के छात्र छात्राओं के साथ देश भर के शिक्षकों के साथ विभिन्न विषयों के शोधार्थी भी बड़ी संख्या में वर्चुअली उपस्थित रहे ।