@. विशेष…
★. कत्यूरी वंशजों ने रानीबाग में की जिया रानी की पूजा अर्चना…..
★. जिया रानी को जब रुहेलों ने घेरा तो पत्थर बन गया उनका घाघरा! आज भी दिखते हैं रंग-बिरंगे पत्थर……
★. राजमाता जिया रानी जिन्होंने मुगल सेना से मुकाबला किया……..
रिपोर्ट (चन्दन सिंह बिष्ट) “स्टार खबर” हल्द्वानी.
हल्द्वानी /रानीबाग
जिया रानी का वास्तविक नाम मौला देवी था, जो हरिद्वार के राजा अमरदेव पुंडीर की पुत्री थीं. बताया जाता है कि 1192 में देश में तुर्कों का शासन स्थापित हो गया था, मगर उसके बाद भी किसी तरह दो शताब्दी तक हरिद्वार में पुंडीर राज्य बना रहा. मौला देवी राजा प्रीतमदेव की दूसरी रानी थीं. मौला रानी से तीन पुत्र धामदेव, दुला, ब्रह्मदेव हुए, जिनमें ब्रह्मदेव को कुछ लोग प्रीतम देव की पहली पत्नी से जन्मा मानते हैं. मौला देवी को राजमाता का दर्जा मिला और उस क्षेत्र में माता को ‘जिया’ कहा जाता था, इसलिए उनका नाम जिया रानी पड़ गया।
उत्तराखंड के हल्द्वानी में गौला नदी के किनारे आज भी एक ऐसी विशाल शिला है, जो किसी घाघरे (लहंगा) की तरह नजर आती है. उस शिला पर रंगीन पत्थर ऐसे दिखते हैं, मानो किसी ने रंगीन लहंगा बिछा दिया हो. यह रंगीन पत्थर जिया रानी का स्मृति चिह्न और उनका स्वरूप माना जाता है. माना जाता है कि जिया रानी ने अपने सतीत्व की रक्षा के लिए इस शिला का ही रूप ले लिया था. जिया रानी को यह स्थान बेहद प्रिय था. यहीं उन्होंने अपना बाग बनाया था और यहीं उन्होंने अपने जीवन की आखिरी सांस भी ली थी. जिया रानी की वजह से ही यह बाग आज रानीबाग (Ranibagh in Haldwani) नाम से मशहूर है. यहां जिया रानी की एक गुफा भी मौजूद है।
जिया रानी की रानीबाग स्थित गुफा के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं. कहा जाता है कि इस गुफा से वह सीधे हरिद्वार निकली थीं. कत्यूरी वंशज हर साल उनकी स्मृति में यहां पहुंचते हैं. बताया जाता है कि कत्यूरी राजा प्रीतमदेव की पत्नी रानी जिया यहां चित्रेश्वर महादेव के दर्शन करने आई थीं. जैसे ही रानी नहाने के लिए गौला नदी में पहुंचीं, वैसे ही रुहेलों की सेना ने उन्हें घेर लिया।
जिया रानी परम शिव भक्त थीं. उन्होंने अपने ईष्ट देवता का स्मरण किया और गौला नदी के पत्थरों में ही समा गईं. रुहेलों ने उन्हें बहुत ढूंढा लेकिन उन्हें जिया रानी कहीं नहीं मिलीं. कहते हैं कि उन्होंने अपने आपको अपने लहंगे में छिपा लिया था और जैसे ही दुश्मनों ने उनके लहंगे को हाथ लगाया, वह उस लहंगे के आकार में ही शिला बन गई थीं. आज भी यह शिला यहां देखने को मिलती है।
“स्टार खबर” की टीम ने पुजारी हरीश चंद्र बताते हैं कि जिया रानी यहां गुफा में रहकर महादेव की तपस्या करती थीं. माता जिया रानी कत्यूरी वंश की रानी थीं. उत्तराखंड में जिया रानी की गुफा के बारे में एक किवदंती काफी प्रचलित है. कत्यूरी राजा पृथ्वीपाल जिन्हें प्रीतमदेव नाम से भी जाना जाता था, की पत्नी रानी जिया रानीबाग में चित्रेश्वर महादेव के दर्शन करने आई थीं. वह बेहद सुंदर थीं. जैसे ही रानी नहाने के लिए गार्गी नदी (गौला नदी) में पहुंचीं, तो वैसे ही रुहेलों की सेना ने वहां घेरा डाल दिया.
हरीश चंद्र ने आगे कहा कि जिया रानी महान शिवभक्त और पवित्र पतिव्रता महिला थीं. ऐसी परिस्थिति में उन्होंने अपने ईष्ट देवताओं का स्मरण किया और गौला नदी के पत्थरों में ही समा गईं. नदी के किनारे एक विचित्र रंग की शिला आज भी देखने को मिलती है, जिसे चित्रशिला कहा जाता है. स्थानीय उत्तराखंडी मान्यताओं में कुछ लोग इस शिला को जिया रानी का घाघरा कहकर पुकारते हैं ।
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“स्टार खबर” की विशेष रिपोर्ट में युवा पत्रकार (पवन सिंह कुंवर जी)ने भी सहयोग किया ।