अल्मोड़ा – ढैंली, अल्मोड़ा द्वारा सूरी, गड़सारी और मटीला गांवों में महिलाओं के साथ बैठक की और ओण जलाने से बढ़ती वनाग्नि दुर्घटनाओं पर चिंता जताई।
संस्थान के सलाहकार गजेन्द्र पाठक द्वारा प्रतिवर्ष 1 अप्रैल को ओण दिवस के रूप में मनाये जाने का सुझाव दिया जिसे महिलाओं द्वारा मान लिया गया।यह तय किया गया कि प्रतिवर्ष 1 अप्रैल तक ओण जलाने की कार्रवाई कर ली जाएगी ताकि अप्रैल, मई और जून के महीनों में, जब तापमान बढ़ जाता है,तेज हवाएं चलती हैं और चीड़ के पेड़ों में पतझड़ होने से जंगलों में पीरूल अधिक मात्रा में जमा हो जाता है,आग लगने की घटनाओं में कमी लाई जा सके। प्रभागीय वनाधिकारी अल्मोड़ा द्वारा ओण दिवस के आयोजन पर सहमति व्यक्त करते हुए वन विभाग की ओर से पूर्ण सहयोग का आश्वासन दिया।
निर्धारित तिथि 1 अप्रैल को मटीला और सूरी गांव में प्रथम ओण दिवस कार्यक्रम का आयोजन किया गया। मटीला में महिलाओं द्वारा प्रतीकात्मक रूप से ओण जलाकर कार्यक्रम की शुरुआत की और फिर मटीला से सूरी गांव तक वनाग्नि जागरूकता रैली का आयोजन किया गया।सूरी में आयोजित कार्यक्रम में खरकिया, मटीला, पड्यूला, बरसीला, डोल,सूरी, गड़़सारी,जाला गांवों की लगभग तीन सौ महिलाओं द्वारा शपथ ली गई कि” प्रतिवर्ष ओण जलाने की कार्रवाई 1 अप्रैल तक पूरी कर ली जाएगी ताकि जंगलों को आग से सुरक्षित रखा जा सके”
कार्यक्रम में मुख्य विकास अधिकारी अल्मोड़ा श्री नवनीत पाण्डे, प्रभागीय वनाधिकारी श्री महातिम यादव, श्री गिरीश चन्द्र शर्मा श्री चंदन डांगी ,श्री आर डी जोशी, श्री रमेश भंडारी,श्री नरेन्द्र सिंह, श्री दिनेश पाठक,श्री रवि परिहार, श्री हीरा सिंह परिहार,श्री भूपाल सिंह परिहार,श्री प्रताप सिंह, श्रीमती अनिता कनवाल, श्रीमती सोनिया बिष्ट, श्रीमती आशा देवी, श्रीमती इंद्रा देवी गजेन्द्र पाठक आदि ने भी प्रतिभाग किया ग्रामोद्योग विकास संस्थान, ढैंली, सेवा भारत संचालित नवनीति सेवा केंद्र सूरी,प्लस एप्रोच फाउंडेशन, नई दिल्ली और नौला फाउंडेशन द्वारा ओण दिवस के आयोजन में सहयोग दिया गया।
इस बीच जिला प्रशासन, वन प्रभाग अल्मोड़ा, प्रोफेसर दुर्गेश पंत जो जंगल बचाओ-जीवन बचाओ अभियान को वर्ष 2003-4 से सहयोग दे रहे हैं, संस्थान की अध्यक्ष श्रीमती रीमा पंत, समाजसेवी श्री अनूप नौटियाल द्वारा शीतलाखेत क्षेत्र में वन विभाग और जनता के परस्पर सहयोग से जंगलों को बचाने के प्रयासों और ओण दिवस की जानकारी माननीय मुख्यमंत्री उत्तराखंड श्री पुष्कर सिंह धामी को दी।इन प्रयासों की सराहना करते हुए मुख्यमंत्री द्वारा ” शीतलाखेत माडल” को राज्य के अन्य हिस्सों में भी दोहराने की घोषणा की।
इन बिंदुओं पर हुई चर्चा और लिए निर्णय
1- जंगलों विशेषकर मिश्रित जंगलों का जल स्त्रोतों, जैवविविधता और पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण और संवर्धन की दृष्टि से विशेष महत्व है। इसलिए इन्हें आग और नुकसान से बचाने के लिए हर संभव प्रयास किए जाएंगे।
2- घास, पीरूल, लकड़ी, छिलका, गुलिया, लीसा, तख्ते, बल्ली , हवा और पानी लेते समय जंगल जनता का है तो जंगल में आग लगने पर और नुकसान होने के समय भी जंगल जनता का ही है।
3- दुर्गम भौगोलिक परिस्थितियों, सीमित संसाधनों के कारण वन विभाग के लिए अकेले जंगलों को आग और नुकसान से बचाना संभव नहीं है ऐसे में जनता को स्वयं आगे आकर अपने जंगलों को बचाने के लिए वन विभाग को सहयोग करना चाहिए।
4- वनाग्नि जल स्त्रोतों, जैवविविधता और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा है।वनाग्नि की घटनाओं को रोकने और वनाग्नि नियंत्रण में वन विभाग को सहयोग देने में महिला मंगल दलों की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका है।
5- चूंकि घास,बिछावन, जलौनी लकड़ी,चारा पत्ती के लिए महिलाओं को नियमित रूप से जंगल जाना पड़ता है और जंगल में आग लगने से महिलाओं को परेशानियों का सामना करना पड़ता है ऐसे में वन क्षेत्रों से लगे सभी गांवों में महिला मंगल दलों का गठन/पंजीकरण कर उन्हें आर्थिक सहायता देकर उन्हें वनों की सुरक्षा से जोड़ने के बेहतर परिणाम मिले हैं।
6- ओण जलाने की परंपरा को समयबद्ध और व्यवस्थित कर जंगलों में आग लगने की घटनाओं में 90% तक कमी लाई जा सकती है। वन विभाग, ग्राम पंचायत,राजस्व विभाग, शिक्षा विभाग,वन पंचायत के परस्पर सहयोग से प्रतिवर्ष मार्च महीने में ही ओण जलाने की कार्रवाई पूरी कर ली जानी चाहिए और 1 अप्रैल को हर ग्राम सभा में ओण दिवस के रूप में मनाया जाना चाहिए इस दिन मानव जीवन में जंगलों के महत्व और वनाग्नि से जंगलों को हो रहे नुकसान पर गोष्ठी, विचार विमर्श किया जाना चाहिए। इसके साथ ही जंगल से सटे जिन इलाकों में पलायन आदि कारणों से घास नहीं काटी जा रही है उन इलाकों में दिसंबर और जनवरी माह में ठंडा फुकान कर घास को जला दिया जाये।
7- आग लगने की सूचना मिलने पर त्वरित कार्रवाई हेतु प्रत्येक बीट में एक क्रू स्टेशन स्थापित करने की आवश्यकता है।
जंगल में आग लगने पर निकटवर्ती क्रू स्टेशन तक सूचना पहुंचाने के लिए एक तंत्र विकसित किया जाना चाहिए जिसमें शिक्षा विभाग, ग्राम पंचायत,राजस्व विभाग महिला मंगल दल और वन विभाग शामिल हों।
8-वनाग्नि प्रबंधन की दृष्टि से पहला आधा घंटा बहुत महत्वपूर्ण है पहले आधे घंटे में आग बुझाने के प्रयास आरंभ किए जाने पर आग को नियंत्रित करने और नुकसान को सीमित करने की संभावना बहुत अधिक होती हैं।
आग लगने के पहले आधे घंटे में त्वरित कार्रवाई करने के लिए ग्राम वन समितियों का गठन किया जाना चाहिए जिसमें वन विभाग,राजस्व विभाग, ग्राम पंचायत,वन पंचायत और महिला मंगल दलों को शामिल किया जाना चाहिए। इस समिति को आग बुझाने के लिए रैक, पानी की बोतल,हैड लैंप,जूते और वायरलेस सेट दिये जाने चाहिए।
प्रथम पंक्ति में आग बुझाने का/फायर लाईन बनाने का काम कर रहे लोगों को समय समय पर भोजन, पानी की आपूर्ति सुनिश्चित की जानी चाहिए।थकान लगने पर प्रथम पंक्ति में लगे लोगों को प्रतिस्थापित करने के लिए दूसरा दल तैयार रखना चाहिए।
9- शीतला खेत क्षेत्र में बांज आदि पेड़ों का कृषि उपकरणों के लिए कटान रोकने में वी एल स्याही हल ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।वनाग्नि से पौधारोपण को होने वाले अपूर्णनीय नुकसान को देखते हुए पौधारोपण पर खर्च की जा रही धनराशि से जंगलों से लगे सभी गांवों में ग्रामीणों को वैकल्पिक कृषि उपकरण जैसे वी एल स्याही हल, कम कीमत पर खाना पकाने की गैस दिये जाने चाहिए ताकि ग्रामीणों की जंगलों पर निर्भरता कम हो और ए एन आर पद्धति से जंगलों का विकास किया जा सके।
10- फायर वाचर्स, दैनिक श्रमिकों और वन बीट अधिकारियों की वनाग्नि नियंत्रण में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका है।इनका मनोबल बढ़ाने के लिए इनके लिए उचित मानदेय,भोजन, वर्दी, आने जाने के लिए वाहन सुविधा तथा अच्छी आवास व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए। फायर वाचर्स को फायर सीजन के बाद जागरूकता अभियान, फायर लाईन की सफाई, रास्तों के रख रखाव,मानव वन्य जीव संघर्ष न्यूनीकरण जैसे कार्यक्रमों से जोड़ने की जरूरत है।
11-वनाग्नि नियंत्रण में फायर लाईन की बेहद महत्वपूर्ण भूमिका है।साफ, सुथरी और चौड़ी फायर लाईन होने पर आग को एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में जाने से रोकना आसान होता है। राज्य के जंगलों में हजारों किलोमीटर लंबी फायर लाईन बनी हुई है परन्तु उचित देखरेख के अभाव में अधिकांश फायर लाईन पेड़ों, झाड़ियों से ढक गई हैं जिसके चलते आग को फैलने से रोकने में बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। फायर लाईन में उग आए पेड़ों और झाड़ियों को हटाने की जरूरत है।
पुरानी फायर लाईनों की सफाई और आवश्यकतानुसार नयी फायर लाईनों का निर्माण किया जाना, जंगलों को लंबे समय तक आग से सुरक्षित रखने की दृष्टि से बेहद जरूरी है।
12-वनाग्नि नियंत्रण और शमन के दौरान कभी कभी दुर्घटनावश चोटिल हो जाने और बेहद असामान्य परिस्थितियों में मृत्यु हो जाने की स्थिति में वनाग्नि नियंत्रण में जुटे वन कर्मियों, फायर वाचर्स, दैनिक श्रमिकों और आम नागरिकों को न्यूनतम 15 लाख रुपए का बीमा कवर दिया जाना चाहिए।
शीतलाखेत क्षेत्र मे वन विभाग और जनता द्वारा परस्पर सहयोग और तालमेल बनाकर महज बीस सालों में लगभग 1100 हैक्टेयर अवनत वन क्षेत्र को मिश्रित जंगल में बदलने में सफलता पाई है और ऐसा ही काम राज्य के हर हिस्से में किया जा सकता है।राज्य सरकार का शीतलाखेत माडल को राज्य के अन्य हिस्सों में ले जाने का निर्णय राज्य के जल स्रोतों, जैवविविधता और पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण एवं संवर्धन की दिशा में एक मील का पत्थर साबित होगा।