नैनीताल – पहाड़ अपनी परम्परा और रीति रिवाज के लिये देश ही नहीं दुनियां दुनियां में अपनी पहचान रखता है। ऐसा ही एक यात्रा है मां नंदा सुनंदा की,पहाड़ के लोग अपनी कुलदेवी की पूजा कर उसको मयके से ससुराल विदा करते हैं। नैनीताल में इस बार नंदा महोत्सव की तैयारियां शुरु हो गई हैं।
नैनीताल में आयोजित होगा 120वाँ नंदा महोत्सव…
पहाड की कुलदेवी नंदा सुनंदा महोत्सव की तैयारियां शुरु हो गई है। नैनीताल में इस बार नंदा महोत्सव 1 सितम्बर से शुरु होगा जो 7 सितम्बर तक चलेगा। इस दौरान कदली यानि केले का पेड़ लाने के बाद मूर्ति निर्माण किया जायेगा, अष्टमी के दिन मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा के बार आम भक्तों के दर्शनों के लिये खोल दिया जायेगा। हफ्ते भर तक मां की अराधना करने के बाद 7 सितम्बर को नगर भ्रमण कर डोले का विर्सजन किया जायेगा । करिब 120 सालों से इस महोत्सव का आयोजन कर रही राम सेवक सभा चन्द्र वंश की कुलदेवी को उसके घर छोडने की तैयारियों में जुटा है। संस्था के सचिव जगदीश बवाड़ी ने कहा कि महोत्सव को इस बार भव्य रुप से मनाया जायेगा और हर व्यक्ति को दर्शन का इस बार पूरा लाभ मिलेगा कोरोना के बाद मेले को भव्य करने की तैयारी है इस दौरान पहाड़ की संस्कृति की झलक पूरे नैनीताल में देखने को मिलेगी।
कुलदेवी के दर्शनों के लिये लोगों में उत्साह….
दरअसल पहाड़ में नंदा को कुलदेवी के रुप में पूजा जाता है, पहाड में नंदा को कैलाश छोड़ने के लिये कई किवदंतियां प्रचलित हैं,पहाड़ में नंदा बेटी बहु के रुप में विदा की जाती है और तो अपनी कुलदेवी के रुप में भी पूजी जाती हैं। हांलाकि इस बार 2 साल बाद इस महोत्सव का भव्य आयोजन हो रहा है तो अपनी बेटी को विदा करने की ललक भी लोगों में ज्यादा दिख रही है। नैनीताल की सुमन साह कहती हैं कि इस बार अभी से एक उर्जा का संचार होने लगा है और माँ ने हमेशा ही खुशहाली दी है दूर से ही कोरोना में दर्शन किया लेकिन इस बार माँ को करीब से मिलने का मौका भी है।
इस दौरान पहाड़ में भक्ति मय रहता है माहौल..
नंदा गढवाल के राजाओं के साथ कुमाऊँ के कत्युरी राजवंश की कुलदेवी है यही कारण है कि मां को राजराजेश्वरी का दर्जा दिया गया है। इस दौरान समूचा उत्तराखण्ड मां की भक्ति में डूबा रहता है तो हजारों लोग उत्साह के साथ नंदा की इस यात्रा में शामिल होता है। हांलाकि इसी दौरान गढवाल में लोक जात यात्रा निकाली जाती है जो नंदा धाम से लेकर वेदनी बुग्याल तक जाती है इस यात्रा में हर साल हजारों लोग जाते हैं तो 12 सालों में आयोजित होने वाली यात्रा में लाखों लोग पहुंचते हैं।
केले से बनती है माँ की मूर्ति…
नैनीताल में कदली यानि केले के पेड़ से बनायी जाने वाली इन मूर्तियों को हजारों लोग पूजा करते हैं। कहा जाता है कि चंद राजा की दो बहनें नंदा व सुनंदा एक बार जब देवी के मंदिर जा रही थीं तो एक राक्षस ने भैंसे का रूप धारण कर उनका पीछा करना शुरू कर दिया। इससे भयभीत होकर दोनों बहनें केले के वृक्ष के पत्तों के पीछे छुप गई। तभी एक बकरे ने आकर केले के पत्तों को खा लिया जिससे भैंसे ने उन्हें देख लिया और दोनों बहनों को मार दिया। यहीं से चंद राजाओं द्वारा उनकी स्थापना कर उनकी पूजा अर्चना की जाती है।