देवी- देवताओं के चित्रों पर पक्ष-विपक्ष की केवल होती है कोरी राजनीति..क्या कभी इन चित्रों की बेअदबी व अनावश्यक प्रिंटिंग के लिए सत्तारूढ़ दल कभी कानून बनाएंगे…?
पिछले दिनों दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने केंद्र सरकार से मांग की थी कि भारत के करेंसी नोट पर महात्मा गांधी के साथ लक्ष्मी-गणेश की तस्वीर छापी जाए। इसे सत्तारूढ़ भाजपा ने केजरीवाल द्वारा गुजरात चुनावों के लिए हिंदुत्व कार्ड खेलना बताया था।जबकि केजरीवाल ने कहा कि इससे देश की गिरती इकोनॉमी को संभालने में मदद मिलेगी। मेरे विवेक से राजनीतिक पार्टीयों के लिए जनभावनाओं से खेलना आम बात है।इसमें सभी राजनीतिक दल पारांगत हैं।पर जब करेंसी पर दैवीय तस्वीरें छपी होंगी तो इसका कूड़े व नालियों में जाने का प्रश्न ही नही।क्योंकि सड़क पर गिरी गाँधी वाले करेंसी नोट को भी लोग तुरंत उठा लेते है।
किसी भी सरकार ने बम पटाखों पर छापे गए देवी देवताओं की बेअदबी की चिंता नही की…
अगर हम बात करें तो दिवाली के लिए पटाखे बनाने वाली कंपनियों की तो न कभी काँग्रेस ने रोका और न ही मोदी सरकार ने उक्त सम्बन्ध में कोई कानून ही बनाया।कि भारतीयों के आराध्य देवी,देवताओं के चित्र इन बारूदों पर न लगाएं जाएं।जो विस्फोट के बाद टुकड़ों में विभक्त होकर सीधे कचरे के डिब्बों व नालियों में पहुंच जाते हैं।
देश का प्रिंट मीडिया भी त्यौहारी सीज़न में हिन्दू देवी-देवताओं की प्रिंटिंग कर,करता है बेअदबी..?
इससे भी ज्यादा शर्मनाक तो यह है कि प्रिंट मीडिया द्वारा नवदुर्गा पूजा,दीपावली पर जो नेताओं के शुभकामना संदेश छापे जाते हैं उनके साथ देवी-देवताओं के चित्र भी छापे जाते हैं।आप सभी जानते हैं कि न्यूजपेपर्स एक दिन बाद रद्दी में तब्दील हो बेचे जाते हैं।उसके बाद इस रद्दी से बड़े-छोटे लिफ़ाफ़े बना दिये जाते हैं।सिंगल यूज प्लास्टिक के प्रतिबंध के बाद अब इन लिफ़ाफ़ों की ज्यादा माँग भी होने लगी है। क्या..कभी आमजन या हमारे आदर्श इन राजनेताओं ने इन समाचार पत्रों पर मुद्रित कंटेंट के बारे में सोचा..? क्योंकि इन पर छापे गए हमारे आराध्यों को रद्दी व कूड़े के ढेर में फेंक दिया जाता है।या बम,पटाखों पर छाप कर मोटा मुनाफ़ा तो ये कंपनियां कमाती हैं पर इस पर सरकारों की मूक सहमति सदा बनी रहती है।मुझे आज कूड़े के ढेर में देवी दुर्गा का चित्र दिखाई दिया।जिसे मैंने तुरंत उठा लिया।जब उस लिफ़ाफ़े के दूसरी ओर मैन देखा तो उसमें प्रभु श्री राम का चित्र था।इस बेअदबी के लिए कौन जिम्मेदार है..?
हिन्दू देवी देवताओं को कहीं भी छापने के लिए एक विशेष कानून की है दरकार…
कुलमिलाकर एक राजनीतिक दल दूसरे राजनीतिक दल की कार्यशैली में खामियां निकालता ही रहता है।जो कि उनके कार्य की दिशा में एक सुदृढ़ राजनीति की कहानियां गढ़ती हैं। वैसे राजनीति में धर्म के प्रवेश को मैं हमेशा अनुचित मानता हूं।पर वर्तमान दौर में राजनीति बिना धर्म के करवट भी नही ले रही है।मेरा मत है कि जब मुस्लिम बहुलतावादी मुल्क इंडोनेशिया की करेंसी में भगवान गणेश की प्रतिमा छापी जाती है तो भारत जैसे देश में जहाँ स्वयं श्री राम, कृष्ण, भोलेनाथ सहित अन्य देवों ने अवतरण लिया।ऋषियों, मुनियों ने स्वयं इन अवतारों की कहानियाँ व स्तुतियों को संजोया।उनकी तस्वीरें देश की करेंसी पर भले ही न लगाई जाए लेकिन आज इन देवी- देवताओं के चित्रों को छापने,उनसे व्यावसायिक लाभ कमाने के लिए तो उद्यमियों में होड़ लगी है। पर हमारे देवी- देवताओं के चित्रों का दुरूपयोग न हो इसे ईशनिंदा की श्रेणी में रखा जाना चाहिए। अब देश के आमजन को ही सोचना होगा कि उनके देवी- देवताओं के चित्रों को कहीं भी न छाप दिया जाय जिससे सनातन हिन्दू सभ्यता का अपमान हो।क्या..उक्त सम्बंध में केंद्र की वर्तमान सरकार को कानून नही बनाना चाहिए..? जरा सोचिएगा..हज़ारों,लाखों व करोड़ों में छप रहे इन चित्रों को कूड़े व नालियों से कौन उठाएगा..यह अपने आप में बड़ा सवाल है।