@आखिर राज्य आंदोलनकारियों की जीत..
★राज्यपाल ने दी आश्रितों को 10 प्रतिशत विधेयक को मंजूरी..
★लंबे समय से थी मांग..हाई कोर्ट ने बताया था असंवैधानिक धामी सरकार ने दी थी मंजूरी..
★रिपोर्ट- (चंदन सिंह बिष्ट ) “स्टार खबर” नैनीताल…
नैनीताल – राज्य आंदोलनकारियों की आखिर जीत हो ही गयी, लंबे समय से 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण की लड़ाई लड़ रहे उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों की मांग पर मुहर लग गयी है, हाई कोर्ट द्वारा आरक्षण को असंवैधानिक करार देने के बाद धामी सरकार के कानून को अब राज्यपाल ने सहमति दे दी है। इस विधेयक को राज्यपाल की मंजूरी के बाद आंदोलनकारी परिवारों को 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण का लाभ मिलने का रास्ता साफ हो रहा है।
*हाई कोर्ट ने कर दिया था आरक्षण को असंवैधानिक घोषित..*
दरअसल आंदोलनकारी आरक्षण को हाई कोर्ट ने चुनौती मिली थी, हाई कोर्ट के डबल बैंच में सुनवाई के बाद 2 जजों के अलग अलग व्यू होने से मामला तीसरी बैंच को रैफर किया गया। उत्तराखंड हाई कोर्ट की तीसरी बेंच ने आरक्षण को असंवैधानिक करार देते हुए आरक्षण देने के खिलाफ अपना मत दिया, 2 एक कब निर्णय के बाद राज्य में आंदोलनकारियों के आरक्षण पर ब्रेक लग गया था।
*2004 में दिया था आरक्षण..*
नवंबर 2004 को राज्य की एड़ी तिवाड़ी सरकार ने उत्तराखंड राज्य आंदोलन में शहीद आंदोलनकारियों के परिजनों और घायल आंदोलनकारियों को सरकारी सेवाओं में 10 फीसद क्षैतिज आरक्षण का शासनादेश जारी किया था, इसमें एक राज्य लोक सेवा आयोग की परिधि के बाहर के पदों केलिए तो दूसरा आयोग की परिधि में आने वाले पदों के लिए था।इसके बाद राज्य आंदोलनकारियों को आरक्षण मिलने लगा लेकिन 2010 में मामला हाई कोर्ट पहुंच गया, हाई कोर्ट में सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने 2011 में आरक्षण पर रोक लगा दी, उस वक्त के मुख्य न्यायधीश की कोर्ट के मामला गया तो चीफ जस्टिस ने इस मामले को सुनवाई के लिए 2015 में जस्टिस सुधांशु धुलिया व जस्टिस यूसी ध्यानी की कोर्ट में भेज दिया, इस पर फैसला देते हुए जस्टिस सुधांशु धुलिया ने आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया तो जस्टिस यूसी ध्यानी ने आरक्षण देने को विधि सम्मत बताया, अलग अलग व्यू होने के बाद मामला तीसरी बेंच को भेज दिया गया, जिस पर सुनवाई के बाद हाई कोर्ट की एकलपीठ ने आरक्षण को असंवैधानिक करार दे दिया।