@नैनीताल राज्य अतिथि गृह नैनीताल में वरिष्ठ अधिवक्ता एम० सी० पन्त एवं उत्तराखण्ड उपनल संविदा कर्मचारी संघ की बैठक… ★बैठक में उत्तराखण्ड उपनल संविदा कर्मचारी संघ अपनी समस्या सबके बीच रखी… ★रिपोर्ट- (ब्यूरो ) “स्टार खबर” नैनीताल…

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@नैनीताल राज्य अतिथि गृह नैनीताल में वरिष्ठ अधिवक्ता एम० सी० पन्त एवं उत्तराखण्ड उपनल संविदा कर्मचारी संघ की बैठक…

★बैठक में उत्तराखण्ड उपनल संविदा कर्मचारी संघ अपनी समस्या सबके बीच रखी…

★रिपोर्ट- (सुनील भारती ) “स्टार खबर” नैनीताल…

नैनीताल / नैनीताल राज्य अतिथि गृह नैनीताल में वरिष्ठ अधिवक्ता एम० सी० पन्त एवं उत्तराखण्ड उपनल सं विदा कर्मचारी संघ के पदाधिकारियों द्वारा वर्षों से राजकीय विभागों/निगमों इत्यादि में कार्यरत कर्मचारियों के संबंध में प्रेसवार्ता की गयी।

राज्य गठन के उपरान्त वर्ष 2004 में राज्य सरकार द्वारा उत्तराखण्ड पूर्व सैनिक कल्याण निगम (उपनल) का गठन हुआ। उपनल के गठन के उपरान्त विभिन्न विभाग/निगमों द्वारा हजारों उपनल कर्मचारियों को नियुक्त किया गया। इसके अतिरिक्त कई ऐसे भी कर्मचारी है जो उपनल गठन से पूर्व किसी अन्य एजेंसी से विभागों/निगमों इत्यादि में कार्यरत थे, उनको वर्ष 2004 के बाद उपनल में समायोजित कर दिया गया।

उपनल कर्मचारी ने कहा उन्होंने अपने जीवन का लंबा समय राज्य सरकार के विभागों/निगमों इत्यादि में अपनी सेवा देने के बाद आज अधिकतर उपनल कर्मचारियों की उम्र 40 से 50 वर्ष तक हो गयी है तथा जिनको उपनल से सेवा देते हुए 10, 15, 20 वर्ष तक हो गए है। इतना लम्बा समय देने के बाद भी उपनल कर्मचारियों का कोई भविष्य नहीं है ।
वर्ष 2018 में माननीय उच्च न्यायालय नैनीताल द्वारा कुन्दन सिंह के पत्र को जनहित याचिका मानकर एक ऐतिहासिक निर्णय दिया गया जिसमें कहा गया कि उपनल वास्तव में एक छदम धुम्र आवरण है और वास्तिविक सेवायोजक राज्य सरकार है और राज्य सरकार अपने कर्मचारियों को समुचित वेतन व सेवा सुरक्षा दिए बगैर इस प्रकार का छदम धुम्र आवरण का प्रयोग कर उपनल के माध्यम से नियोजन दिखाना जबकि न तो उपनल के पास कोई लाईसेन्स संविदा श्रम उन्मूलन अधिनियम के अन्तर्गत है न हीं राज्य सरकार के विभिन्न विभागों जिनमें उपनल के माध्यम से कर्मचारी कार्य कर रहे है के पास उक्त अधिनियम के तहत कोई प्रमाण पत्र है।  वरिष्ठ अधिवक्ता एम० सी० पन्त ने कहा माननीय न्यायालय में उपनल के माध्यम से नियोजित कर्मचारियों के वेतन से जीएसटी की कटौती को भी अवैध माना और सभी उपनल कर्मचारियों को प्रचलित नियमों के तहत नियमितकरण करने का आदेश राज्य सरकार को दिया व नियमितिकरण तक नियमित कर्मचारी की भाँति न्यूनतम वेतनमान व डीए का भुगतान करने का आदेश दिया व उपनल कर्मचारियों के वेतन से जीएसटी की कटौती पर भी रोक लगा दी परन्तु राज्य सरकार के सचिवों की हठधर्मिता के कारण उपरोक्त मामले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गयी है। वहीं माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा राज्य सरकार की विशेष अनुमति याचिका निरस्त कर दी गयी। वर्ष 2016 मे स्वंय शासन द्वारा शासनादेश जारी कर उपनल के द्वारा नियोजित कार्मिकों द्वारा धारित पदों को सीधी भर्ती के पदों को भरे जाने पर प्रतिबन्ध लगाया गया व ऐसी दशा में कार्मिक विभाग की पुर्वानुमति आवश्यक मानी गयी परन्तु स्वंय शासन के कथित सचिवों द्वारा उपरोक्त शासनादेशों की अवेहलना कर सीधी भर्ती की कार्यवाही की गयी और ऐसी भर्ती के फलस्वरूप 10 वर्षों से भी अधिक वर्षों से कार्यरत कई उपनल कर्मचारियों को सीधी भर्ती हेतु अधिकतम आयु सीमा को पार कर चुके थे को सेवा से हटा दिया गया। उल्लेखनीय है कि शासन के उपरोक्त सचिवों द्वारा माननीय उच्चतम न्यायालय की संवैधानिक पीठ स्टील अर्थोरिटी आफ इण्डिया बनाम नेशनल वाटर फ्रंट यूनियन के निर्णय व उत्तर प्रदेश औद्योगिक विवाद अधिनियम में सेवायोजक की परिभाषा का भी कोई संज्ञान नहीं लिया गया और न ही लिया जा रहा है और न ही आदर्श स्थाई आदेशों का कोई संज्ञान लिया जा रहा है जो कि प्रावधानित करता है कि कोई भी कर्मकार जो निरन्तर 240 दिन से अधिक की सेवा कर लेता है वह स्थाई कर्मकार माना जायेगा। सचिवों की हठधर्मिता का परिणाम वादों की बहुल्यता व अनुचित श्रम व्यवहार एवं कर्मचारियों व श्रमिकों को बंधुवा श्रमिक मानकर उनका उत्पीड़न करने के रूप में परिलक्षित हो रहा है। उपनल कर्मचारी ने कहा ऐसा प्रतीत होता है कि राज्य के नीतिनिर्धारक सचिव उत्तराखण्ड के बेरोजगार नवयुवकों के प्रति कोई सहानुभूति नही रखते है ।

वहीं वरिष्ठ अधिवक्ता एम० सी० पंत ने कहा कि मुख्यमंत्री व मंत्रीगण को वित्तीय भार के नाम पर गुमराह कर न्यायालय के आदेशों को लागू करने में टाल-मटोल कर रहे है। उल्लेखनीय है कि उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ द्वारा राज्य सरकार को समस्या का समाधान बताते हुए माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा वर्ष 1971 में दिए गए न्याय निर्णय जय सिंह बनाम पंजाब सरकार में प्रतिपादित विधि के सिद्वान्तों जिसमें उपनल सदृश्य अस्थाई कर्मचारियों जो 10 वर्ष से अधिक की सेवा कर चुके हैं हेतु Diminshing Cadre कैडर सृजित कर ऐसे कर्मचारियों को एकमुश्त तौर पर उनके द्वारा सेवानिवृत्ति की आयु पूर्ण करने तक उन्हें नियमित कर्मचारी घोषित कर दिया जाय, का भी समाधान दिया, परन्तु राज्य सरकार के अधिवक्ता द्वारा समय मांगने के बावजूद भी आजतक उपरोक्त संबंध में कोई सकारात्मक उत्तर उत्तराखण्ड शासन के नीतिनिर्धारक सचिवों की ओर से प्रस्तुत नहीं किया। वहीं दूसरी ओर शासन के कथित नीतिनिर्धारक सचिवों के सलाह के अनुसार राज्य सरकार की ओर से उच्चतम न्यायालय में पुर्नविचार याचिका दायर करने की बात कही गयी और यहीं नहीं सैनिक कल्याण मंत्री जो अब तक पुरजोर तौर पर उपनल कर्मचारियों के हितों का संरक्षण करने की बात करते थे उच्चतम न्यायालय का निर्णय आने के बाद कथित रूप से नियमितीकरण हेतु आरक्षण आदि का अनावश्यक प्रश्न उठाकर मामले को घुमाना चाहते है और वास्तव में उनके द्वारा कहा गया कथन केवल राज्य के कतिपय नीतिनिर्धारक सचिव जो अपने स्वार्थ के कारण उत्तराखण्ड के बेरोजगार युवकों को उनका अधिकार नहीं देना चाहते है।इस दौरान कर्मचारियों ने कहा हम माननीय मुख्यमंत्री महोदय व समस्त मंत्रीमण्डल से निवेदन करते हैं कि तत्काल माननीय न्यायालयों के आदेशों का सम्मान कर उपनल के माध्यम से नियोजित समस्त कर्मियों को नियमित कर्मचारी घोषित करने के साथ-साथ नियमित वेतनमान व महंगाई भत्ता व अन्य लाभ दिया जाय एवं माननीय उच्च न्यायालय नैनीताल द्वारा दिए गए निर्णय जो 12 नवम्बर 2018 से लेकर आजतक जितने भी उपनल के माध्यम से कार्यरत कर्मचारियों को सेवा से हटाया गया है उन्हें सेवा में पुर्नस्थापित कर नियमितकरण व अन्य लाभ दिए जाय तथा करोनोकाल में जिन उपनल कर्मचारियों की मृत्यु हो गयी उनके परिवार के सदस्यों को नियमित रोजगार दिया जाय एवं समस्त कर्मचारियों के नियमीतिकरण करने तक उपनल के द्वारा नियोजित कर्मचारियों के द्वारा धारित पदों पर किसी प्रकार से कोई सीधी भर्ती से नियुक्ति न की जाय यदि की जा रही है तो उसे तत्काल रोका जाय।