@फागोत्सव.. ★वसंत ऋतु के पर्व में भक्त अपने भगवान के साथ गुलाल और फूलों से होली खेलते है… ★प्रोफेसर- ललित तिवारी…

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@फागोत्सव..

★वसंत ऋतु के पर्व में भक्त अपने भगवान के साथ गुलाल और फूलों से होली खेलते है…

★प्रोफेसर- ललित तिवारी…

नैनीताल। फागोत्सव जिसे फगुआ भी कहा जाता है बसंत ऋतु के जश्न का त्यौहार है जिसे बुराई पर अच्छाई ,एकता प्रेम भाईचारे तथा रंगों शामिल है तो बिष्णु ,शिव ,श्री हरि ,गणेश के साथ कृष्ण एवं कुल देवताओं की पूजा भी इसमें की जाती है ।
वसंत ऋतु के पर्व में भक्त अपने भगवान के साथ गुलाल और फूलों से होली खेलते हैं ।. इस दौरान, भक्त कबीर, मीरा, और राधा-कृष्ण के होली गीत भी गाते हैं । ब्रिज की होली हो या काली कुमाऊं की या बरसाने की होली लोगों को प्रकृति के रंग ,फूलों के साथ उल्लासित करते है ।
महिलाएं पहाड़ की समृद्ध परंपरा को आगे बढ़ा रहीं । महिलायें घरों से निकलकर न केवल परम्परा को बचाये रखने में अहम रोल निभा रही हैं, बल्कि इसके माध्यम से त्यौहारों को जीवन्त रखने व संस्कृति को संरक्षित करने में इनका योगदान अहम है।

फ़ाग उत्सव में, होलियारों के साथ-साथ बड़ी संख्या में देश-विदेश से आए पर्यटक भी हिस्सा लेते हैं । यह बसंत पंचमी से होली तक चलने वाला 40 दिनों का उत्सव होता है. फागोत्सव में फूलों ,रंगों से होली खेली जाती है ।
होली के दिन गाए जाने वाले गीत को फगुआ कहते हैं. फाग में होली खेलने, प्रकृति की सुंदरता और राधाकृष्ण के प्रेम का वर्णन होता है.।
नैनीताल में प्राचीनतम धार्मिक एवं संस्कृति संस्था 1918 में स्थापना के ही होली का आयोजन करती आ रही है किंतु फागोत्सव का यह 29 वा वर्ष है जिसे पूस के पहले इतवार से शुरूकर भगवानों को समर्पित किया जाता है। बसंत पंचमी से श्रृंगार एवं शिवरात्रि से शिव जी भी होली में शामिल होते है तथा रंग धारण से होलिका दहन तक फागोत्सव की धूम रहती है जो लोगों को उत्साहित एवं उनमें जीवन में कलाकारों के माध्यम से रंग घोलने का काम करते है। इसीलिए कहा गया है
कौन रंग फागुन रंगे, रंगता कौन वसंत,
प्रेम रंग फागुन रंगे, प्रीत कुसुंभ वसंत।

रोमरोम केसर घुली, चंदन महके अंग,
कब जाने कब धो गया, फागुन सारे रंग ।
मन टेसू टेसू हुआ तन ये हुआ गुलाल
अंखियों, अंखियों बो गया, फागुन कई