उत्तराखंड में आज भी डोली धरती..बार-बार रिएक्टर स्केल पर कम तीव्रता के भूकंप आने से बड़े भूकंप का खतरा होता है कम..- प्रो0 कोटलिया…
आज उत्तराखंड के पौड़ी जनपद में सुबह 10:00 बजे भूकंप के हल्के झटके महसूस किए गये। रिएक्टर स्केल पर इस भूकंप की तीव्रता 2.4 आंकी गई।तथा प्रातः 4 बजे बागेश्वर जनपद में भी भूकंप के झटके महसूस किए गए।उत्तराखंड में बार-बार भूकंप आने का क्रम जारी है।इसी वजह से चर्चाओं का बाजार ज्यादा गर्म हैं। आपको बता दे कि पिछले दिनों वाडिया इंस्टीट्यूट के हवाले से राष्ट्रीय मीडिया में ख़बरें चल रही थी कि उत्तराखंड में तुर्की,सीरिया जैसा भयावह भूकंप तबाही करेगा।यहाँ तक कि कुछ अतिज्ञानियों ने तो भूकंप से होने वाले नुकसान का आँकलन करना भी शुरू कर दिया कि कितने करोड़ों की इससे हानि होगी।यह ख़बरें पूरी तरह से असत्य हैं।
अमेरिकन सॉइन्टिस्ट रोज़र विलाइन व भारतीय भू-वैज्ञानिक प्रो0विनोद गौड़ ने 20 वर्ष पूर्व उत्तर भारत में बड़े भूकंप आने के संकेत दिए थे..बड़े भूकंप का आधार पर्याप्त है..पर छोटे भूकंप खतरे को टालते हैं…
आज इसी संबंध में “स्टार ख़बर” ने कुमाऊँ विश्वविद्यालय के वरिष्ठ भूगर्भ शास्त्री प्रो0 बहादुर सिंह कोटलिया से बातचीत की।उन्होंने बताया कि जैसे नीदरलैंड के एक व्यक्ति ने तुर्की में बड़े भूकंप की घोषणा की थी और भूकंप से तबाही पूरे विश्व ने देखी।इसी देखा देखी में कुछ भू- वैज्ञानिक उत्तराखंड में भी एक बड़े भूकंप के आने की चर्चा करने लगे।जबकि वास्तविकता में यह चर्चा पिछले 20 वर्षों से हो रही है। उत्तर भारत में पिछले 100 वर्षों से बड़े भूकंप नही आये है। इसका सीधा सा सिद्धांत है जब धरती के भीतर टेक्टोनिक प्लेट्स दूसरी प्लेटों से टकराती हैं तो उससे भारी मात्रा में एनर्जी उत्पन्न होती है। ज्ञात रहे कि इंडियन प्लेट्स भी यूरेशियन प्लेट्स से लगातार टकरा रहीं है।अब अगर यह एनर्जी छोटे-छोटे मतलब रिएक्टर स्केल पर कम ताक़त वाले भूकंप के रूप में बाहर आती है तो इससे धीरे-धीरे उत्पन्न एनर्जी रिलीज़ होती जाएगी और बड़े भूकंप का खतरा टल जाएगा ऐसा माना जाता है।भूकंप रिएक्टर स्केल पर 8 से ज्यादा का ही आएगा यह पूर्व आंकलन या पुष्टि करना बिल्कुल गलत है।वैसे उत्तराखंड सिस्मोलॉजिकली लॉक्ड एरिया के अंतर्गत है।यहाँ भूकंप की संभावनाएं सर्वाधिक हैं।जोशीमठ से लेकर मुनस्यारी फाल्ट तक ज्यादा डिफ़ॉर्मेशन है जिससे यहाँ भूकंप का ज्यादा खतरा है।और मेंन बाउंड्री थ्रस्ट पर ज्योलिकोट से टनकपुर तक तुलनात्मक ख़तरा कम है।बकौल प्रो0 कोटलिया यदि क्षेत्र में छोटे अर्थक्वेक ज्यादा आते है तो यह भूगर्भ में उत्पन्न एनर्जी स्वतः रिलीज़ हो जाएगी।और बड़े भूकंप के खतरे टल सकते हैं।इसलिए फिलवक्त इससे ज्यादा डरने की जरूरत नही है।