घुघुतिया त्यौहार मकर संक्रांति उत्तरायणी के रूप…

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उत्तराखंड में मनाए जाने वाले त्यौहार घुघुतिया त्यौहार मकर संक्रांति उत्तरायणी के रूप में मनाया जाता है। उत्तराखंड के कई तीर्थ स्थलों में इस मेले का आयोजन बड़ी धूमधाम के साथ किया जाता है । इस त्यौहार को कुमाऊँ में घुघुतिया के रूप में मनाया जाता है । माघ के पहले दिन सूर्य मकर रेखा से कर्क रेखा की तरफ उत्तर को उत्तरायणी भी कहा जाता है। जब सूर्य एक राशि से दूसरी राशि को संक्रमण करता है उसे संक्रांति कहते हैं । संक्रांति और उत्तरायणी एक है और घुघुतिया को कुमाऊं में मकर संक्रांति के दिन मनाया जाता है। माघ के पहले तीन दिन तक व्रत रखा जाता है और विष्णु भगवान की पूजा की जाती है। इस माह खिचड़ी खा कर व्रत तोड़ा जाता है और खिचड़ी का दान भी किया जाता है ।कुमाऊं में घुघुतिया त्योहार को बहुत धूमधाम के साथ मनाया जाता है । एक दिन पहले आटे के साथ गुड़ को मिलाकर गुथा जाता है और फिर उन्हें जलेबी की तरह गोल घुघुती बनाकर खजूर , व चिमटे के आकार का बनाकर दूसरे दिन तला जाता है। इसके बाद माला में पिरो कर बच्चों के गले में पहना दिया जाता है और कौवे को आवाज लगाकर उन्हें पकवान खिलाए जाते हैं। घुघुतिया त्योहार को मनाने के पीछे एक कहानी है। कहा जाता है कुमाऊं के चंद राजा कल्याण चंद की कोई संतान नहीं थी ।जिसके चलते राजा और रानी हमेशा दुखी रहते थे ।इस कारण राज्य के मंत्री राजा का उत्तराधिकारी ना होने के कारण राज्य पर अपना आधिपत्य करने की सोच रखने लग गए थे ।एक दिन राजा और रानी बागेश्वर के बागनाथ मंदिर गए वहां उन्होंने भगवान शिव से संतान प्राप्ति की मनोकामना मांगी। कुछ समय बीत जाने के भगवान के आशीर्वाद से उन्हें पुत्र के रूप में एक संतान प्राप्त हुई ।राजा के पुत्र का लालन-पालन बड़े ही प्यार के साथ हुआ रानी अपने पुत्र को घुघुती के नाम से पुकारती थी और उसके गले में मोतियों का हार पहनाया करती थी जो उसके पुत्र को बहुत पसंद थी ।रानी का बेटा उस मोती की माला को हमेशा पहने रहता था। पुत्र जब अपनी मां से किसी वस्तु को पाने की जिद करता था तो रानी उसे यह कहकर डराती थी अगर उसने कहना नहीं माना तो मोती की माला वह कौवे को दे देगी ।अपने बच्चों को डराने के लिए रानी जोर जोर से आवाज लगाकर बोलती थी काले कौवा काले मोती माला खाले । रोज रानी कौवे के लिए कुछ खाना बाहर आंगन में रहती थी और कौवे रोज खाना खाने के लिए राज महल के आंगन में आया करते थे और राजकुमार भी उन्हें खाना खिलाया करता था। जिससे कौवे और राजकुमार के बीच दोस्ती हो गई थी। एक दिन राजा के लालची मंत्री ने मौका पाकर राजकुमार को मारने के इरादे से अगवा कर लिया और जंगल की ओर ले गया ।मंत्री द्वारा राजकुमार का अपहरण के इस कृत्य को देख कौवे ने उसका पीछा करना शुरू कर दिया और आवाज लगाकर और कौव भी वहां बुला लिया मंत्री और राजकुमार के बीच खींचतान में राजकुमार की मोती की माला टूट कर जमीन में गिर गई और मौका पाकर कौवा चोंच से उठाकर सीधा राज महल में ले गया और बाकी कौवों ने लालची मंत्री पर चोंच मारकर हमला कर दिया जिसके चलते धूर्त मंत्री वहां से भाग खड़ा हुआ । कौवें के सारे मित्रों ने राजमहल में जाकर जोर-जोर से कांव-कांव की आवाज लगाने लगानी शुरू कर दी किससे राजा रानी और सिपाहियों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर सकें और जंगल की ओर उड़कर इशारा करने लगे ।यह सब देख राजा रानी उनके इशारों को पहचान लिया और उनका पीछा कर उसी जगह पहुंच गए जहां राजकुमार घुघुति था ।राजकुमार को सकुशल पाकर राजा रानी को अपार प्रसन्नता हुई इसके बाद उन्होंने राजमहल जाकर बहुत सारे पकवान बनाएं और राजकुमार घुघुती से कहा बाहर जाकर अपने मित्र कौवों को यह सारे पकवान खिलाओ धीरे-धीरे यह बात सारे कुमाऊं में फैल गई और इस प्रकार यह त्यौहार के रूप में मनाए जाने लगा और लोगों पकवान बनाकर कौवों को खिलाना शुरू कर दिया ।इसके अलावा भी कई ऐसे मत है घुघुती नाम का एक राजा था जिसकी मृत्यु उत्तरायणी के दिन कौवा द्वारा बताई गई थी। राजा की मृत्यु टालने के उपाय किया गया उत्तरायणी के दिन सुबह से ही बहुत सारे पकवान बनाकर कौवों को खिलाया जिससे उन्हें उलझाए जा सके ।औऱ
राजा की मृत्यु को टाला जा सके। सुबह से पूरी व ढेर सारे पकवान बनाकर वह उनकी माला पहना कर बच्चों को पहनाने का रिवाज भी है । कौवे को विष्णु भगवान का असीम भक्त माना जाता है ।उत्तरायणी को सुर्य के निकलने से पहले स्नान करके विष्णु पूजन किया जाता है। बच्चे कौवों को पकवान खिलाकर खुश रखते हैं क्योंकि मकर सक्रांति का अधिपति शनि होता है और शनि काले वर्ण का होता है इसलिए काले वर्ण के पक्षी कौवा को बुलाया जाता है। घुघुतिया के साथ कुमाऊं में उत्तरायणी पर्व को बहुत बड़ा पर्व माघ माह का श्री गणेश होता है क्योंकि माघ का महीना सबसे सर्वश्रेष्ठ माना जाता है ।माघ माह में स्नान करने का अपना महत्व है इन दिनों स्नान करने से उतना पुण्य प्राप्त होता है जितना आप पुष्कर, गंगा ,प्रयाग व अन्य तीर्थ स्थलों में 10 वर्षों तक स्नान कर के प्राप्त होता है ।पूरे माघ में स्नान करने का सबसे ज्यादा महत्व है जो सूर्य के मकर राशि की तरफ संक्रमण करते वक्त सूर्योदय से पहले स्नान किया जाता है इस समय का स्नान सब पापों को नष्ट करने वाला होता है । उत्तराखंड में कुमाऊं में उत्तरायणी पर्व पर बागेश्वर सरयू में स्नान इतना महत्वपूर्ण है जितना प्रयाग के त्रिवेणी में स्नान करना ।बागेश्वर में उत्तरायणी मेले का धार्मिक महत्व के साथ-साथ राजनीतिक महत्व है ।इस पर्व में 1921 ई• में कुमाऊं केसरी पंडित बद्री दत्त पांडे और साथी नेताओं ने कुली बेगार प्रथा के विरुद्ध आवाज उठाई थी । इन लोगों ने कुली बेगार से जुड़े दस्तावेज और रजिस्टर सरयू नदी में बहा दिए थे।