एक दिवसीय पश्चिमी मातृ दिवस अवश्य सेलिब्रेट करें।पर माता-पिता का सम्मान सदैव होना चाहिए…
मातृ दिवस का उद्गम
मई महीने के दूसरे रविवार को मदर्स डे यानी मातृ दिवस सेलिब्रेट करने की करीब 100 वर्षों से अधिक समय पूर्व से परंपरा चल रही है। इस दिन की शुरुआत एना जार्विस ने की थी।जो कि अमेरिका में एक स्कूल शिक्षिका थी।एना का मानना था कि दुनिया में माँ से ज्यादा आपका ध्यान और कोई व्यक्ति नही रख सकता।एना की माँ रीव्स जार्विस 1958 से रीव्स चर्च में एक मदर्स डे नेटवर्क चलाती थी।जिसका उद्देश्य शिशु मृत्यु दर को कम करना था। क्योंकि एना के 9 भाई-बहनों की मृत्यु किसी अज्ञात बीमारी के चलते हो गई थी।इसीलिए उसका मन समाजसेवा में ज्यादा लगने लगा।
1905 में माँ रीव्स जार्विस की मृत्यु के बाद एना ने 1908 में पहली बार 10 मई को चर्च में मदर्स डे का आयोजन किया।
उन्होंने यह दिन अपनी मां को समर्पित किया और इसकी तारीख इस तरह चुनी कि वह उनकी मां की पुण्यतिथि 9 मई के आसपास ही पड़े।
एना के इस प्रोग्राम की खूब सराहना हुई। जिसके फलस्वरूप 1910 में वेस्ट वर्जिनिया स्टेट में इस दिन को राजकीय दिवस बना दिया गया।वर्ष 1914 में अमेरिकी राष्ट्रपति विल्सन ने भी इस दिन को मई के दूसरे रविवार को देश की माओं को समर्पित करते हुए इसका गजट कर दिया।और इस तरह से 8 मई को माँ को सम्मान देने की एकदिवसीय परम्परा का जन्म हो गया…
कुलमिलाकर विदेशी परंपराओं का अनुशरण करना हम भारतीयों को बहुत सुहाता है। पश्चिमी सभ्यता यही सिखाती है कि सभी जन आत्मनिर्भर होकर अपना कार्य करें।कोई भी व्यक्ति किसी दूसरे के बीच अपनी टाँग न फँसाये। वहाँ वयस्क होते ही बच्चे अपने माता-पिता को छोड़कर अपना जीवन अपने हिसाब से अलग तय करते हैं। जबकि भारत में ये परंपराएं बिल्कुल अलग रही हैं।यहाँ संयुक्त परिवार में परिवारजन आपस मे मिलकर रहा करते थे। माँ-पिता परिवार का प्रमुख अंग माने जाते हैं।शादी,विवाह,शुभ कार्यों व किसी भी कार्य के पहले माँ-बाबूजी से ही उसका निष्पादन कराया जाता है। मतलब ये की भारतीय उप महाद्वीप में जन्म दाता के साये के इर्दगिर्द ही जीवन की परिकल्पना सार्थक मानी जाती रही है। विगत कुछ वर्षों से पश्चिमी सभ्यता के पीछे भागते हुए हमारे देश में भी एकल परिवारों का चलन बहुत तेजी से बढ़ा है। अपने पूरे जीवन माता-पिता की सेवा करने वाले भी क्योंकि अब माता पिता से दूर रहने लगे इसलिए इन विदेशी सभ्यताओं व चलन का भी उनके मन मस्तिष्क पर गहरा असर हुआ।फिर पश्चिमी सलिब्रेशन ही हमारे आदर्श बन गए।
भारतीय संस्कृति में मातृ देवो भव..पित्र देवो भव
कृपया माता-पिता को किसी एक दिन में न सहेजें।भारत वर्ष में ईश्वर से पहले माता-पिता का स्थान है।इन विभूतियों का सदैव सम्मान करें।क्योंकि ये जीवित देवी देवता हैं।जो अपना मन मारकर अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा,खानपान व मौज मस्ती के साधन सुलभ कराते है।जिसका वो कोई मोल नही लगाते।अगर बच्चे किसी मुकाम पर पहुंच कर कहीं दूर रहने लगते हैं।तब भी वो खुश होकर अपना आशीर्वाद उलेड़ते रहते है.. मातृ दिवस अवश्य सेलिब्रेट करें पर याद रखें कि माता पिता का सम्मान सदैव मतलब सभी दिन करना है…