लोकायुक्त की नियुक्ति पर फंसी उत्तराखंड सरकार..जब तक नियुक्ति नही तब तक संस्था के खाते फ्रीज़..-हाई कोर्ट

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उत्तराखंड उच्च न्यायालय नैनीताल ने प्रदेश सरकार को लोकायुक्त की नियुक्ति करने का दिया कड़ा आदेश..जब तक नियुक्ति नही तब तक इस संस्था के खाते से निकासी नही…

उत्तराखंड उच्च न्यायालय नैनीताल ने प्रदेश सरकार की ढुलमुल नीतियों पर करारा प्रहार किया है।हाई कोर्ट द्वारा राज्य सरकार की कार्यशैली पर गंभीर रुख अपनाते हुए आठ सप्ताह के भीतर लोकायुक्त की नियुक्ति करने व अनुपालन आख्या कोर्ट में दाखिल करने का सख्त आदेश जारी किया है।यहाँ यह बताया जाना भी आवश्यक है कि वर्ष 2011 में भाजपानित खंडूरी सरकार में कड़क लोकायुक्त का प्रावधान लाया गया था जिसमें मुख्यमंत्री के भ्रष्टाचार की जांच का अधिकार लोकायुक्त को दे दिया गया लेकिन 2014 में इस एक्ट को बदल दिया गया व मुख्यमंत्री को इसके दायरे से ही बाहर कर दिया गया।केवल एक्ट को लोकायुक्त की नियुक्ति से प्रभावी मानने की बात कह दी गई।लेकिन अब हाईकोर्ट ने लोकायुक्त को नियुक्त करने का आदेश दिया है जिससे भ्रष्टाचार पर लगाम लगने की उम्मीद भी राज्यवासियों को बंधी है।

राज्यहित में कर चुके हैं अनेक जनहित याचिकाएं.. लोकायुक्त की नियुक्ति करने से मिटेगा भ्रष्टाचार…-रवि शंकर जोशी याचिकाकर्ता

आपको बता दें कि हल्द्वानी गौलापार निवासी रवि शंकर जोशी द्वारा राज्य में खनन,एन.एच-74 सहित दवा घोटाले को आधार बनाकर याचिका दाखिल की तो बिना लोकायुक्त के हर साल 2 करोड़ खर्च की बात भी कोर्ट के सामने रखी थी।सरकार ने भी अपने शपथ पत्र में कहा कि 36 करोड़ 95 लाख का बजट लोकायुक्त संस्थान को दिया जिसमें 29 करोड़ खर्च कर दिया।प्रदेश सरकार भी लोकायुक्त की नियुक्ति पर कोर्ट में गोलमोल जवाब ही देती रही। हांलाकि अब लोकायुक्त की नियुक्ति के उच्च न्यायालय के आदेश के बाद अब याचिकाकर्ता इसे भ्रष्टाचार पर वार मान रहे हैं।

उत्तराखंड उच्च न्यायालय का कड़ा आदेश..जल्द हो लोकायुक्त की नियुक्ति…

उपरोक्त मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश श्री विपिन सांघी एवं न्यायमूर्ति श्री राकेश थपलियाल की पीठ के समक्ष हुई।कोर्ट ने राज्य सरकार की उपरोक्त मामले में निष्क्रियता को केंद्रीय अधिनियम, लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम- 2013, की धारा 63 का उल्लंघन माना।साथ ही राज्य सरकार द्वारा दाखिल शपथ पत्र में उल्लिखित तथ्यों का संज्ञान लेते हुए हैरानी जताई कि बिना लोकायुक्त की नियुक्ति के और बिना कोई कार्य करे इस संस्था को आवंटित 36 करोड़ 95 लाख रुपए में से 29 करोड़ 73 रुपए खर्च भी कर दिए हैं। इसके अलावा संस्था में 24 कार्मिकों को भी नियुक्त किया गया है। उच्च न्यायालय द्वारा यह भी आदेशित किया गया है कि प्रदेश में जब तक लोकायुक्त की नियुक्ति नही हो जाती तब तक इस संस्थान के कोष में से एक नया पैसा भी खर्च नहीं किया जाएगा। साथ ही राज्य सरकार को तीन सप्ताह में एक शपथ पत्र के माध्यम से उपरोक्त 24 कार्मिकों का विवरण देने के साथ उनसे लिए जाने वाले कार्यों का ब्योरा देने का आदेश भी जारी किया गया।