विपक्षी एकजुटता न होने से अब देश को नुकसान बता रहीं हैं..मार्गरेट अल्वा
विपक्ष के उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा ने पहले अपने समकक्ष एन.डी.ए के जगदीप धनखड़ को चुनाव जीतने पर बधाई दी।फिर अपने सहयोगी दलों पर ही भड़क गईं। उन्होंने विपक्षी दलों को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि कुछ विपक्षी दलों ने भाजपा का समर्थन किया। जिससे उनकी साख को ठेस पहुँची है।
उन्होंने कहा कि यह चुनाव विपक्ष के लिए अतीत को पीछे छोड़,एक साथ काम करने और एक-दूसरे के बीच विश्वास बनाने के लिए एक अवसर था। दुर्भाग्य से, कुछ विपक्षी दलों ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा को समर्थन करने का विकल्प चुना, जिससे विपक्षी एकजुटता के विचार को पूरी तरह से पटरी से उतार दिया है।अल्वा ने कहा कि हमारे लोकतंत्र को मजबूत करने और संसद की गरिमा को बहाल करने की लड़ाई आगे भी जारी रहेगी।
भारी अंतराल से जीते हैं एन.डी.ए उम्मीदवार…
आपको बता दें कि पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल जगदीप धनखड़ शनिवार को भारत के नए उपराष्ट्रपति चुने गए हैं। उन्हें विपक्षी उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा के खिलाफ 528 वोट मिले।लेकिन विपक्ष की उम्मीदवार अल्वा को 182 वोट मिले। ज्ञात रहे कि कई विपक्षी दलों ने इस उपराष्ट्रपति पद के लिए धनखड़ का समर्थन किया है।इनमें जनता दल (यूनाइटेड), वाइ.एस.आर, बी.एस.पी, ए.आई.ए.डी.एम.के और शिवसेना शामिल है।
राजनीति में होते हैं विपक्षी दलों के भी अपने-अपने फायदे व नुकसान…
कुलमिलाकर एकजुट विपक्ष का दावा करने वाले नेताओं के यह विचार कि सत्तारूढ़ दलों के आगे नतमस्तक हो रहे हैं विपक्षी दल।लेकिन विपक्षी दलों के अपने स्वार्थों के चलते,सत्तासीनों के उम्मीदवार को समर्थन देना कोई नई बात नही है। पिछले कार्यकालों में भी बी.एस.पी नेता मायावती सत्तारूढ़ दल के साथ ही थी।
इसलिए माना जाता है कि एनडीए के लिए राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति चुनाव में तमिलनाडु के व अन्य गैर-संप्रगित दल ए.आई.ए.डी.एम.के, बी.जे.डी और टी.आर.एस ने खास भूमिका निभाई हैं। क्योंकि तमिलनाडु को सालों से कृषि संबंधित मुद्दों का सामना करना पड़ रहा है। और ओडिशा में बीजेडी सत्तारूढ़ को पर्याप्त केंद्रीय सहायता की आवश्यकता है।वहीं दूसरे राज्य को केंद्र सरकार की सहायता की बड़ी दरकार होती है।वहीं तेलंगाना में भी टी.आर.एस की अपनी सत्तारूढ़ जरूरतें रहीं होंगी।
अब अन्य विपक्षी दलों को भी लुभावने वादे व फंडिंग सत्तारूढ़ दल द्वारा ही संभव है तो फिर उपराष्ट्रपति पद की विपक्षी उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा को विपक्षी एकता जैसे शब्दों को कहने से बचना चाहिए। यदि उनकी पूर्व की सरकारों ने विपक्ष में एकता रखने की नसीहत दी होती तो निश्चित ही वो भी इस प्रश्न को उठाती हुई अच्छी लगती।मायावती तो हमेशा आय से अधिक संपत्ति मामले में सत्तारूढ़ दल को ही अपना समर्थन देती रहीं जिससे उन पर सरकारी जाँच एजेंसियों की निगाह न पड़े।अन्य विपक्षी दलों को भी निजी हित देखने की पूरी आज़ादी इस देश में है।