भारत में तेजी से घट रही गरीबों की संख्या.. पिछले 5 सालों में 13.5 करोड़ लोग मल्टी डाइमेंशनल गरीबी से निकले बाहर…
भारत में साल 2016-21 तक पाँच वर्षों के दौरान लगभग 13.5 करोड़ लोग गरीबी से मुक्ति पाकर बाहर आ गए है।यह बात नीति आयोग की सोमवार को आई एक रिपोर्ट में कही गई है।नीति आयोग ने रिपोर्ट में कहा कि राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक एम.पी.आई अनुसार 2015-16 में बहुआयामी गरीबी का आंकड़ा 24.85 प्रतिशत था जो 9.89 प्रतिशत घटकर 2019-2021 में 14.96 प्रतिशत रह गया है।दरअसल इस रिपोर्ट को स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर में सुधार के आधार पर मापा जाता है। इनमें उत्तर प्रदेश, बिहार,उड़ीसा, राजस्थान और मध्य प्रदेश में सबसे तेजी से गरीबी में कमी दर्ज की गई बताया गया है।नीति आयोग की रिपोर्ट में गरीबी में गिरावट का श्रेय स्वच्छता, पोषण, खाना पकाने के ईंधन, वित्तीय समावेशन, पेयजल और बिजली इत्यादि में सुधार के लिए सरकार की ओर से किए गए प्रयासों को दिया गया है।
राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक: समीक्षा 2023 जारी कर कहा कि सरकारी सुविधाओं के चलते देश मे घट रही गरीबी..- सुमन बेरी उपाध्यक्ष नीति आयोग…
आपको बता दें कि नीति आयोग की उपाध्यक्ष सुमन बेरी की ओर से ‘राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक: समीक्षा 2023 को जारी कर कहा गया कि ”2015-16 और 2019-21 के बीच रिकॉर्ड 13.5 करोड़ लोग बहुआयामी निर्धनता से बाहर निकले हैं।नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी बी.वी.आर सुब्रमण्यम ने यहाँ तक कहा कि भारत एस.डी.जी लक्ष्य 1.1, मतलब वर्ष 2030 तक बहुआयामी गरीबी को कम से कम आधा करने की योजना पर कार्य कर रहा है जिसे निर्धारित समय सीमा से बहुत पहले ही हासिल कर लिया जाएगा।रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी में सबसे तेज गिरावट 32.59 प्रतिशत से घटकर 19.28 प्रतिशत हो गई है जबकि शहरी क्षेत्रों में गरीबी 8.65 प्रतिशत से घटकर 5.27 प्रतिशत हो गई है।
वैश्विक एम.पी.आई के हिसाब से आमजन को संसाधनों की अधिक उपलब्धता के बाद लगातार परिष्कृत हो रहा गरीबी स्तर में सुधार..पिछले 15 वर्षों के भीतर भारत में कुल 41.5 करोड़ लोग गरीबी से निकले बाहर…
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम और ओ.पी.एच.आई की ओर से जारी वैश्विक एम.पी.आई के नवीनतम अपडेट के अनुसार भी 2005-2006 से 2019-2021 तक केवल 15 वर्षों के भीतर भारत में कुल 41.5 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले।हालांकि वैश्विक एम.पी.आई के हिसाब से संसाधनों की अधिक उपलब्धता के बाद भी पाँच वर्ष में 13.5 करोड़ लोगों का जीवन स्तर ऊपर उठा है।पर यहाँ सोचनीय पहलू यह है कि उससे पहले दस वर्षों में गरीबी से बाहर आने वालों की संख्या लगभग 28 करोड़ रही है।तो उस हिसाब से नीति आयोग को वर्तमान में अपनी सरकार की पीठ थपथपाने की ज्यादा आवश्यकता नही है।एक बात और है कि रोजगार उपलब्धता का इस गरीबी के स्तर से ऊपर उठाने में कोई योगदान नही है।मतलब देश में रोजगार देने से नही केवल सरकारी सुविधाएं आमजन को सुलभ करा देने से ही गरीबी में गिरावट दर्ज की जा रही है।
आप भी एक बार सोचिएगा कि देश के आमजन को रोज़गार न देकर केवल मुफ़्त की सुविधाएं उपलब्ध कराकर क्या उनके जीवन स्तर में स्थायी सुधार संभव है..?या मात्र कोरे प्रचार के लिए केंद्र सरकार ये गरीबी उन्मूलन का प्रपंच रचती है…? यहाँ बड़ा सवाल यह उठता है कि गरीबी उन्मूलन के लिए क्या..सरकार द्वारा मुफ्त सुविधाएं बढ़ाते जाने से ही गरीबी आंकड़ों में दूर कर दी जाएगी या फिर रोजगार उपलब्ध कराकर कुछ वास्तविक प्रयास भी किये जायेंगे..?