देश की सर्वोच्च अदालत ने मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में उठाये बड़े सवाल..कानून विरुद्ध बताया नियुक्तियों का तरीका…

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केंद्र सरकार द्वारा 15 मई से खाली चल रहे मुख्य चुनाव आयुक्त के पद पर ताजपोशी न किये जाने व अचानक चार नामों की संस्तुति किये जाना व्यवस्था पर बड़े सवाल खड़े कर रहा है-सर्वोच्च अदालत

देश में मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में पारदर्शिता लाने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया।इस पीठ में जस्टिस के.एम जोसफ, जस्टिस अजय रस्तोगी, जस्टिस अनिरुद्ध बोस, जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस सी.टी रविकुमार थे।सभी पक्षकारों को लिखित दलीलें देने के लिए पांच दिनों की मोहलत संविधान पीठ ने दी है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि क्या मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से नियुक्ति के लिए एक स्वतंत्र पैनल का गठन किया जाए..?
आपको बता दें कि सुनवाई के चौथे दिन सरकार को सुप्रीम कोर्ट के कई तीखें सवालों का सामना करना पड़ा। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के मुताबिक अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमनी ने चुनाव आयुक्त अरुण गोयल की नियुक्ति से जुड़ी फ़ाइल कोर्ट में पेश की। कोर्ट ने फ़ाइल देखकर इस नियुक्ति में सरकार की ओर से अचानक दिखाई गई तेज़ी पर सवाल खड़ा किया।कोर्ट का यह भी ऐतराज़ था कि इन चयनित मुख्य चुनाव आयुक्त का कार्यकाल 6 साल कार्यकाल भी नहीं होगा।आखिर ऐसा चुनाव क्यों किया गया।
आपको ऐसे लोगों को चुनना चाहिए जिन्हें आयोग में 6 साल का कार्यकाल मिले।अगर आप इस बात पर अड़े हुए हैं कि किसी भी चुनाव आयुक्त को पूर्ण कार्यकाल नहीं मिलेगा, तो आप क़ानून के खिलाफ हैं।

केंद्र ने महज 24 घन्टे में मुख्य चुनाव आयुक्त चुनने की सारी प्रकिया पूरी कर फ़ाइल पेश कर दी…

संविधान पीठ की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस के एम जोसेफ ने कहा कि 18 नवंबर को हम इस मसले पर सुनवाई कर रहे थे। उसी दिन नियुक्ति के लिए फाइल भेजी गई और पीएम ने उसी दिन नाम को मंजूरी दे दी। इतनी जल्दबाजी की क्या ज़रूरत थी…?
बेंच के एक दूसरे सदस्य जस्टिस अजय रस्तोगी ने भी सवाल उठाया कि चुनाव आयुक्त का पद 15 मई से खाली था।उन्होंने सरकार से पूछा कि आप बताइए कि 15 मई से 18 नवंबर के बीच क्या हुआ। 24 घण्टे में ही नाम भेजे जाने से लेकर उसे मंजूरी दिए जाने की सारी प्रकिया पूरी कर ली गई।
सुप्रीम कोर्ट ने इस पद पर नियुक्ति के लिए क़ानून मंत्रालय की ओर से सिफारिश के लिए चार नामों के चयन और उनमें से भी एक नाम के चयन के आधार पर भी सवाल खड़ा किया।कोर्ट ने कहा कि आप हमें बताइये कि कानून मंत्रालय ने इन 4 नामों को ही क्यों चुना। सवाल है कि आपने चयन के लिए लिस्ट को इन 4 लोगों तक ही सीमित क्यों रखा है। इनके अलावा और भी बहुत वरिष्ठ नौकरशाह हैं उन्हें मौका क्यों नही दिया गया..?कोर्ट ने कहा कि हमारी चिंता नियुक्ति की प्रकिया या आधार को लेकर है। एक ऐसे शख्स जो दिसंबर में रिटायर होने वाले थे। जो इन 4 में सबसे ज़्यादा युवा थे केंद्र सरकार ने उनको किस आधार पर चुना..?

अटॉनी जनरल आर वेंकटरमनी ने कहा कि कुछ भी गलत नही हुआ…

सुनवाई के दौरान अटॉनी जनरल ने कहा कि इन नाम को शार्टलिस्ट करने के लिए कई आधार है मसलन अधिकारियों की वरिष्ठता सूची, रिटायरमेंट, और उनका चुनाव आयोग में कार्यकाल देखा जाता है। इस प्रक्रिया में भी कुछ गलत नहीं हुआ है।ऐसे पहले भी 12 से 24 घंटे में नियुक्ति हुई है।ये चार नाम भी DOPT के डेटाबेस से लिए गए। वह सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है।अगर आप हर कदम पर शक करेंगे तो ये चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और गरिमा को प्रभावित करेगा। ये आयोग के बारे में लोगों की राय पर भी बुरा असर डालेगा।
इस पर जस्टिस जोसेफ ने अटॉर्नी जनरल से कहा कि कोई भी यह न समझे कि हम आपके खिलाफ हैं। हम केवल यहां पर चर्चा ही कर रहे हैं।कि क्या ये नियुक्ति कानून संगत है..?