जनता कहिंन…कोर्ट से न्याय तो तब मिलेगा जब व्यवस्था पर्याप्त सुबूत पेश करे…😢
आज देश में बड़ा सवाल यह खड़ा हो गया है कि सत्तारूढ़ दलों को जब जुर्म पर पर्दे ही डालने होते हैं तो फिर अपनी ईमानदारी दिखाने के लिए मुद्दों को उठाया ही क्यों जाता है..?
आज उत्तराखंड के इस चर्चित UKSSSC पेपर लीक घोटाले में चार लोगों को कोर्ट से जमानत मिल गई है।कल अन्य सभी आरोपितों को भी मिल जाएगी।और फिर यह मामला यहीं खत्म। राजनेताओं द्वारा फिर कोई नया मामला तलाश कर लिया जाएगा।
इस मामले में साँप भी नही मरा और लाठी भी नही टूटी।राजनीतिक लम्फटों द्वारा केवल ईमानदारी का डंका बजाकर मामला खत्म कर दिया जाएगा। दूसरे मामले में उत्तराखंड में वनंत्रा रिसोर्ट के मालिक व त्रिवेंद्र सरकार में भाजपा के मंत्री के पुत्र की हरकतें पूरे देश ने देखी हैं।19 साल की एक गरीब लड़की अंकिता भंडारी जो जरूरत मंद थी।रोजगार के लिए उक्त रिसोर्ट में रिशेप्शनिस्ट की नौकरी करती थी।उसे अपने वी.आई.पी गेस्ट को खुश न किये जाने पर उसकी नृशंस हत्या कर दी जाती है व घटनास्थल से सुबूत मिटाने के लिए सत्तासीन ही मददगार साबित होते हैं।और रिसोर्ट के कुछ हिस्से में आग लगा दी जाती है।और कुछ हिस्से को बुलडोजर से तोड़ दिया जाता है।अब न्यायपालिका में तो सुबूतों की आवश्कता होती है।कमजोर सुबूत न्यायालय में पेश किए जाएं या सुबूत नष्ट कर दिए जाएं तो न्यायपालिका कैसे अभियुक्तों को सज़ा दे पाएगी..? वास्तव में न्यायपालिका का दोष नही है।यह पूरा दोष मामले खुलने पर पर्दे डालने जैसा है।उक्त पेपर लीक मामले में भी गाज़ केवल हाकम सिंह पर ही गिरा का उनका रिसोर्ट सरकार द्वारा नेस्तीनाबूद करवा दिया गया। जबकि यह हाकम सिंह की अवैध संपत्ति थी तो संबंधित विभागों को उसकी जाँच करनी चाहिए थी।सुबूत नष्ट करना ही मक़सद नही होना चाहिए। हालांकि राज्य में भर्ती परीक्षाओं में हुई धाँधलियों पर मुख्यमन्त्री पुष्कर सिंह धामी के जीरो टॉलरेंस के सिद्धांत का पालन करते हुए उत्तराखंड एसटीएफ़ ने बड़ी कार्रवाई की है।
यूकेएसएसएससी द्वारा 2016 में कराई गई वीपीडीओ भर्ती परीक्षा में धांधली की जाँच में आज आर.बी.एस रावत पूर्व चेयरमैन,सचिव मनोहर कन्याल,पूर्व परीक्षा नियंत्रक आर.एस. पोखरिया को गिरफ़्तार कर लिया गया है।
जुर्म के सुबूत की कड़ियों को कमजोर या नष्ट करना सरकार का काम नही…
कुलमिलाकर सत्ता पर लंबे समय काबिज़ रहने की इच्छाशक्ति के चलते राजनीतिक दल कुछ मामलों को बढ़ा चढ़ा कर जनता के सामने यूँ पेश करते हैं जैसे पिछले सभी राजनीतिक दलों ने समाज में उन्माद फैला रखा हो और अब वो केवल न्याय की परिधि में ही शासन करेंगे।जिसका पूरा फायदा आमजन को ही मिलने वाला है। अब जनता को ही समझना होगा कि यही अपराध अगर आमजन करता है तो उसे कानून सख्त सज़ा देता है पर सरकार से जुड़े हुए अपराधियों को कानून सज़ा क्यों नही दे पाता..? इसका सीधा सा मतलब है कि जिनकी सत्ता में पकड़ नही है अगर वो अपराध में लिप्त पाए जाते है तो देश की न्यायपालिक उन्हें सज़ा दे देती है।और सत्ता की निकटता के चलते स्वयं सत्तासीन ही अपने लोगों की मदद सुबूत कमजोर करके या नष्ट कर देती है।
हमारे देश की न्यायिक व्यवस्था खराब नही है।बल्कि ये सत्ता की निकटता के चलते उनके ख़िलाफ़ पर्याप्त सुबूत ही न्यायपालिका को मुहैया नही कराए जाते हैं तो फिर उन्हें सज़ा कौन देगा। आप ही बताएं कि उन्नाव कांड के बाहुबली भाजपा विधायक रहे कुलदीप सिंह सैंगर को मामले के साढ़े पाँच साल बाद भी सज़ा नही दी गई है।जबकि मामला फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट में चल रहा है। इसीलिए यहाँ यह कहना उचित होगा कि लोगों का राजनीति में अधिकाधिक आने का एक कारण भी यही है कि सरकार के संरक्षण में अपराधियों के आर्थिक व सभी तरह के अपराध लगभग माफ़ ही कर दिए जाते है। अतः अब आमजन को समझना होगा कि ये घोटाले राजनीतिक दलों के लिए केवल एक मुद्दे होते हैं।जिनमें लोगों को तो तत्काल अव्यवस्था दिखाई देती है लेकिन नतीजतन उसका कोई औचित्य नही होता। इस UKSSSC पेपर लीक घोटाले के पीछे भी कुछ बड़े हाथ अवश्य होंगे क्या उनके गले तक भी जाँच कर्ताओं के हाथ पहुंचेंगे।यह बड़ा सवाल अभी भी बना हुआ है।