क्या कर्ज में डूब रहे उत्तराखंड के निवासियों को सत्तारूढ़ दलों द्वारा राज्य स्थापना दिवस की बधाई देना है जायज़…

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आज उत्तराखंड को बने 22 बरस हो गए हैं..इस अवधि में क्या खोया क्या पाया उत्तराखंड ने..क्या इस राज्य की सरकार को स्थापना दिवस पर आमजन को बधाई देना उचित है…?

आज उत्तराखंड राज्य को बने पूरे 22 बरस हो गए है।उत्तराखंड राज्य पाने के लिए आंदोलनकारियों को लंबा संघर्ष करना पड़ा था। लाठियां और गोलियां खाई थीं।और 42 शहादतों,आंदोलनों,मुसीबतों के बाद यह पहाड़ी राज्य अस्तित्व में आया था।पर वर्तमान में सत्तासीनों के कारण उत्तराखंड की वित्तीय माली हालात लगातार बिगड़ते जा रही हैं। राज्य पर अब तक 80 हज़ार करोड़ रुपये से कहीं ज्यादा का कर्ज हो चुका है।राज्य पर यह कर्ज वर्ष 2016-17 में 44,583 करोड़ का कर्ज था। जो वर्ष 2021 में 73,751 करोड़ तक पहुंच चुका है।इसकी आय की 71 फीसदी से अधिक रकम देनदारी चुकाने में ही खर्च हो जा रही है।

कर्ज के बोझ तले दबाया सभी सरकारों ने…

सरकार को जब कर्ज और उस पर लगने वाले ब्याज को ही चुकाने के लिए उधार लेना पड़ रहा हो तो बड़ा सवाल यह उठता है कि प्रदेश में बड़ी विकास कार्य योजनाओं को कैसे शुरू किया जाएगा। ऐसे हालातों में राज्य सरकार अपने संसाधनों से कोई बड़े प्रोजेक्ट बनाने की सोच भी नहीं सकती लिहाजा उसे केंद्रीय अनुदान के भरोसे ही निर्भर रहना होगा।इसीलिए डबल इंजिन की सरकारों को ज्यादा जरूरी बताया जा रहा है।अगर स्थितियाँ ऐसी ही बनी रही तो एक दिन निश्चित ही सभी कुछ प्राइवेट सेक्टर की कम्पनियों को सौंप दिया जाएगा।

क्या प्राकृतिक संसाधनों की कमी है मूल वजह या है फिजूलखर्ची…

अब सोचनीय प्रश्न यह है कि 22 वर्षों में प्रदेश का नेतृत्व कर रहे हमारे जनसेवक प्रदेश की लुटिया क्यों डुबो रहे है..? क्या सरकारी संसाधनों की राज्य में कमी हो गई है..? या लूट खसोट तंत्र के कारण यह स्थितियाँ बन गई हैं।अगर सरकारें इंफ्रास्ट्रक्चर, घर-घर शुद्ध पेयजल,महंगाई, सड़कों का वृहद जाल सरीखी समस्याओं से सफलता पूर्वक निपट रहीं हैं या तो फिर कर्ज यूँ ही बढ़ता जा रहा है..? कहीं आय से अधिक ख़र्चे तो नही किये जा रहे हैं..?अधिक वी.आई.पी मूवमेंट, सरकारों द्वारा अनावश्यक ख़र्चे बंद क्यों नही किये जा रहे है..?

अगर जल्द ही सरकार द्वारा अनावश्यक खर्चों पर कटौती नही की गई तो हालात होंगे और भी बद्तर…

कुलमिलाकर आज भी पहाड़ी मार्गों की स्थिति बदतर होती जा रही है।गढ़वाल मंडल में चार धाम मार्गों के चौड़ीकरण व सड़कों की स्थिति कुछ बेहतर हुई पर कुमाऊँ मंडल में तो 16 माह पूर्व भारी बारिश में खराब हुई सड़कें आज तक ठीक नही की गई है।देश के प्रमुख राष्ट्रीय चैनलों पर “बढ़ते उत्तराखंड” के ऐड चलाये जा रहे हैं।जबकि प्रदेश की जनता खराब सड़कों से त्रस्त है।क्या यह राज्य शहीद आंदोलनकारियों के सपनों को साकार करता व नये आयाम लिखता उत्तराखंड है..?ज़रा सोचिएगा कि क्या नया राज्य बनाकर जनता ने कोई गलती तो नही कर दी..? क्योंकि जब तक सत्तारूढ़ दल अपने राजनीतिक खर्चों , रैलियों व विज्ञापनों पर खर्चों को कम नही करेंगे।तब तक नौजवान हो चुके उत्तराखंड को कर्जों से मुक्ति नही मिलेगी।इसलिए आमजन को राज्य स्थापना दिवस की बधाई न देकर केवल सभी राजनीतिक दलों को बहुत-बहुत बधाई..जिनके मार्गदर्शन में उत्तराखंड यहाँ तक पहुंच पाया।