कर्ज में डूबे राज्य उत्तराखंड में धामी सरकार खुल कर लुटा रही धन..

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उत्तराखंड में जल विद्युत कंपनियों से ₹ एक हजार करोड़ से अधिक राजस्व का है मामला। आखिर क्यों हायर किये जाते हैं बाहर से बड़े एडवोकेट..क्या प्रदेश में सरकारी वकीलों की फौज नाकाबिल है..या नहीं है उन पर  भरोसा…?

ख़बर देहरादून-जन संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष एवं गढ़वाल मंडल विकास निगम के पूर्व उपाध्यक्ष रघुनाथ सिंह नेगी ने खुलासा करते हुए बताया कि सरकार द्वारा वर्ष 2012 में इलेक्ट्रिसिटी जेनरेशन एक्ट के तहत प्राइवेट व सरकारी जल विद्युत कंपनियों पर वाटर टैक्स लगाया गया था।जो कि 30 मेगा वाट क्षमता पर 2 पैसे प्रति क्यूबिक मीटर, 60 मेगा वाट पर 5 पैसे, 90 मेगा वाट पर 7 पैसे तथा 90 मेगा वाट के ऊपर 10 पैसे क्यूबिक मीटर निर्धारित किया था, जिसके हिसाब से इन कंपनियों पर 1000 करोड रुपए से अधिक का राजस्व बकाया है। जैसा कि दस्तावेज बताते हैं।

क्या है पूरा मामला आपको बताते हैं…

जल विद्युत के क्षेत्र में कार्य कर रही सरकारी एवं प्राइवेट कंपनियों जैसे टी.एच.डी.सी, एन.एच.पी.सी, अलकनंदा हाइड्रो पावर, भिलंगना हाइड्रो पावर, जयप्रकाश पावर वेंचर्स, स्वास्ति पावर प्राइवेट लि. आदि द्वारा मा. उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल कर वाटर टैक्स माफ करने की गुहार लगाई। जिसको मा. उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने दिनांक 12/02/21 को खारिज कर दिया।उक्त के पश्चात इन प्राइवेट कंपनियों द्वारा मा. उच्च न्यायालय में स्पेशल अपील दायर की गई, जिसमें सरकार द्वारा महाधिवक्ता एवं उनकी भारी-भरकम फौज पर भरोसा करने की बजाय दिल्ली से प्राइवेट वकील लाकर पैरवी कराई गई, जिस पर मा. उच्च न्यायालय की खंडपीठ द्वारा 02/08/21 एवं 12/07/21 के द्वारा उक्त आदेश के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी यानी सरकार को हार का मुंह देखना पड़ा ।स्पष्ट शब्दों में कहें तो सरकार अपना एक्ट बचाने में नाकामयाब रही ।उक्त मामले में अगली सुनवाई की तिथि 06/09/22 नियत की गई है।

कर्ज में डूबे राज्य उत्तराखंड में धामी सरकार खुल कर बहा रही धन..फिर भी नतीजा सिफर..

यहाँ बड़ा सवाल यह उठता है कि मुख्यमंत्री पुष्कर धामी के ऊर्जा विभाग की ऐसी हालत क्या हो गई कि कर्ज में डूबने के बाद और प्रतिवर्ष लाखों- करोड़ों रुपया सरकारी व्यवस्था पर खर्च करने के बाद भी सरकार अपने महाधिवक्ता पर क्यों भरोसा नहीं जता पाई या महाधिवक्ता व उनकी टीम की काबिलियत पर सरकार को भरोसा नहीं या फिर प्राइवेट वकील से पैरवी के क्या मायने हो सकते हैं ! क्यों प्राइवेट वकीलों पर पैसा पानी की तरह बहा जा रहा है..? पैसा बहाने के बाद भी इसके नतीजे सिफर ही रहे।