श्राद्ध पक्ष… पितरों का करें तर्पण..कब कौन सा श्राद्ध जानें आचार्य पंडित प्रकाश जोशी से.. क्या है श्राद्ध के मायने पूरी जानकारी पढ़े खबर..

557

*बहुत महत्वपूर्ण है सोलह श्राद्धों का महालय पक्ष जानिए 2024 में किस तिथि को होगा कौन सा श्राद्ध ।किसने किया सर्वप्रथम श्राद्ध का प्रारंभ?क्या हैं श्राद्ध का महत्च?*

आश्विन मास के कृष्ण पक्ष को महालय पक्ष कहते हैं। माना जाता
है कि इस पक्ष में पित्रगण स्वर्ग लोक से भूलोक में ध्रमण करने आते हैं। भाद्र मास के शुक्ल पक्ष
पूर्णमासी और आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की 15 तिथियां मिलाकर
16 श्राद्ध माने गए हैं। हिंदू धर्म में इन दिनों का विशेष महत्व माना
जाता है। ऐसा माना जाता है कि पितृपक्ष में श्राद्ध और तर्पण करने
से पितर प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद प्रदान करते हैं। पितरों
की कृपा से जीवन में आने वाली कई तरह की बाधाएं दूर होती हैं।
व्यक्ति को कई तरह की समस्याओं से भी मुक्ति मिलती है। सनातन धर्म
में ऐसी मान्यता है कि पितृपक्ष में पितरों का स्मरण और उनकी पूजा
करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। श्राद्ध न होने की स्थिति में आत्मा को पूर्ण मुक्ति नहीं मिलती है। विद्वानों के अनुसार पितृपक्ष में नियमित रूप से दान पुण्य करने से
जातक की कुंडली में पित्र दोष भी दूर हो जाता है ।इस पितृपक्ष में हर
व्यक्ति को चाहिए कि वह अपने पितरों को नियमित रूप से प्रतिदिन
जल अर्पित करें। पित्र तर्पण एवं श्राद्ध करने का विधान यह है कि
सर्वप्रथम हाथ में जौं तिल, कुशा और जल लेकर संकल्प करें।
इसके बाद पित्रों का आवाहन करना चाहिए। तर्पण के उपरांत
भगवान सूर्य देव को प्रणाम करके उन्हें अर्ध्य भी देना चाहिए।कहा
जाता है कि पूर्वजों का श्राद्ध तर्पण न किया जाए तो पित्र दोष का
भागी बनना पड़ता है। श्राद्ध कर्म शास्त्र में यह उल्लेखित है – श्राद्धं न कुरु्ते मोहात तस्य रक्तम
पिवन्नते ।अर्थात मृत प्राणी बाध्य होकर श्राद्ध न करने वाले अपने
सगे संबंधियों का रक्त पान करते हैं।
उपनिषद में भी श्राद्ध कर्म के महत्व पर प्रमाण मिलता है ।इस महालय पक्ष में जो 16 दिन का माना गया है इसमें यह भी माना गया है कि जब
तक पितर का श्राद्ध नहीं होता तब तक पितर उसके घर के मुख्य द्वार
पर श्राद्ध के इंतजार में बैठे रहते हैं।श्राद्ध में जो पत्तल परोसा जाता है।
उसमें घर में बने सभी पकवान के साथ-साथ सभी फल मौसमी फल
अखरोट दाड़िम अनार सभी चीजें रखते हैं। क्योकि इस महालय पक्ष
में सभी फल मौजूद रहते हैं। अनेकों पाठकों के मन में एक प्रश्न उठ रहा
होगाकी यह श्राद्ध परंपरा कब शुरू हुई या इस पृथ्वी लोक में सर्वप्रथम श्राद्ध किसने किया है?
पाठकों को बताना चाहूंगा की पंचम वेद कहे जाने वाले ग्रंथ महाभारत
के अनुशासन पर्व में भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को श्राद्ध के संबंध में कई ऐसी बातें बताई हैं जो वर्तमान
समय में बहुत कम लोग जानते हैं।महाभारत के अनुशासन पर्व के
अनुसार श्राद्ध का उपदेश महर्षि निमी को महा तपस्वी अत्रि मुनि ने
दिया था। इस प्रकार सबसे पहले महर्षि निमी ने श्राद्ध का प्रारंभ किया। महर्षि निमी की देखा देखी अन्य महर्षि भी श्राद्ध करने लगे।
धीरे-धीरे सवर्णों के लोगश्राद्ध में पितरों को अन्न देने लगे इस प्रकार
लगातार श्राद्ध का भोजन करते करते देवता गण एवं पित्र गण पूर्ण
तृप्त हो गए इतने तृप्त हो गए कि पितरों को आर्जीण ,अफारा(भोजन न पचने)वाला रोग हो गयाऔर उन्हें इस रोग से बहुत कष्ट होने लगा। तब
सभी ऋषि मुनि ब्रह्मा जी के पास गए और उनसे कहा कि श्राद्ध का
अन्न खाते खाते हमारी गत खराब हो गई है। अब आप ही हमारा
कल्याण कर सकते हैं। पितरों की बात सुनकर ब्रह्माजी बोले चिंता
करने की कोई बात नहीं हैं इस बीमारी का भी इलाज है। मेरे निकट
अग्निदेव बैठे हैं यह आपका कल्याण करेंगे। ऋषि मुनियों ने अग्नि देव को प्रणाम कर कहा
अग्निदेव हमारा कल्याण कीजिए।अग्निदेव बोले पितरो ! अब से आप
और हम लोग साथ में ही भोजन किया करेंगे। मेरे साथ रहने से आप
लोगों का अजीर्ण दूर हो जाएगा।यह सुनकर देवता तथा पितर प्रसन्न हो गए। इसलिए श्राद्ध में सबसे पहले अग्नि का भाग दिया जाता
है। इस तरह से श्राद्ध की यह परंपरा आगे बढ़ती चली गई और पितरों का श्राद्ध करके ब्राह्मणों को
भोजन करवाया जाने लगा। हमारे हिंदू धर्म शास्त्रों में इस बात का भी उल्लेख है कि हवन में जो पितरों के निमित्त पिंडदान किया जाता है उसे ब्रह्मराक्षस भी दूषित नहीं कर पाते हैं श्राद्ध में अग्नि देव को देखकर
राक्षस भी वहां से चले जाते हैं।क्योंकि अग्नि हर चीज को पवित्र
कर देती है। और पवित्र खाना मिलने से पिेत्र देवता प्रसन्न होते हैं। इसीलिए श्राद्ध में परोसे पत्तल के नीचे (मंडल भस्माकं चतुष्कोण मंडलं लिखित्वा)जले कोयले से चौकोर मंडल लिखा जाता है।
देवभूमि उत्तराखंड के कुमाऊँ संभाग में छ: पीढी तक के पितरों
के नाम के संकल्प लिए जाते हैं।
उदाहरणार्थ – जैसे मेरे पूज्य पिताजी पं० स्व० श्री बद्रीदत्त जोशी उनके पिताजी पं० स्व श्री
दत्तराम जोशी ,दत्त राम जी के पिता पं० स्व०
श्री बालकिशन जोशी बालकिशन जी के पिता
पं० स्व० श्री गजाधर जोशी आदि आदि। कुमाऊं में कुल ६ पीढ़ियों तक के नाम के संकल्प उच्चारण करते हैं ६
पीढीयाँ में ३ घर के २ नैनीहाल के तथा 1 ससुराल पक्ष के शामिल
होते हैं। जबकि कही – कही 21 पीढीयों के पूर्वजों के नाम के
संकल्प लिए जाते हैं जिसमें 7 पीढ़ी घर के 7 पीढी नैनिहाल के तथा 7
पीढी ससुराल पक्ष के होते हैं। इसके अतिरिक्त जेष्ठ पितु (ताऊजी) कनिष्ठ पितु (चाचा) आदि के नाम के संकल्प भी दिलवाये जाते हैं।
*अब एक नजर 2024 में सोलह श्राद्धों की तिथि पर-*
दिनांक 18 सितंबर 2024-पूर्णिमा एवं प्रतिपदा श्राद्ध।
19 सितंबर द्वितीय श्राद्ध।
20 सितंबर तृतीय श्राद्ध
21 सितंबर चतुर्थी श्राद्ध
22 सितंबर पंचमी श्राद्ध
23 सितंबर षष्ठी एवं सप्तमी श्रद्धा।
24 सितंबर अष्टमी श्राद्ध
25 सितंबर नवमी श्राद्ध
26 सितंबर दशमी श्राद्ध
27 सितंबर एकादशी श्राद्ध।
28 सितंबर इंदिरा एकादशी व्रत।
29 सितंबर द्वादशी श्राद्ध
30 सितंबर त्रयोदशी श्राद्ध।
1 अक्टूबर चतुर्दशी श्राद्ध।
2 अक्टूबर पितृ विसर्जन अमावस्या।