उत्तराखंड हाई कोर्ट का बड़ा आदेश…. रिटायर्ड कर्मचारियों की पेंशन से नहीं हो सकती अनिवार्य कटौती…विकल्प से सरकार वापसी का भी प्रावधान..

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नैनीताल – राज्य में रिटायर्ड़ कर्मचारियों की पैंसन से मेडिकल सुविधा के नाम पर हो रही अनिवार्य कटौती को खत्म कर दिया है। चीफ जस्टिस कोर्ट ने कहा कि सरकार अनिवार्य कटौती पेंसन से नहीं कर सकती है लेकिन इसके लिये सालाना विकल्प देना जरुरी है वहीं कोर्ट ने कहा की जिन लोगों से कटौती सरकार ने कर दी है लेकिन उनको यह नहीं चाहिये था वो सरकार से इसे वापस ले सकती है……31 जनवरी 2020 को सरकार ने अनिवार्य कटौती का आदेश दिया था जिसको गणपथ सिंह ने हाईकोर्ट में इस आदेश को चुनौती दी थी। याचिका में कहा गया था कि सरकार असंवैधानिक तौर पर कटौती कर रही है और पेंसन उनका अधिकार है जिसके लिये उनसे बिना पूछे कटौती सरकार नहीं कर सकती है।

*पेंशन से बिना विकल्प दिए अनिवार्य कटौती नहीं कर सकती सरकार: हाई कोर्ट*

देहरादून निवासी गणपत सिंह बिष्ट के द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए माननीय उच्च न्यायालय ने खंड पीठ के 15/12/2021 के उस अंतरिम आदेश पर मुहर लगा दी है जिसमें माननीय उच्च न्यायालय ने सरकार को आदेशित किया किया था कि वह पेंशन से राज्य स्वस्तिक प्राधिकरण द्वारा संचालित अटल आयुष्मान योजना के तहत अनिवार्य कटौती नहीं कर सकती | गौरतलब है माननीय उच्च न्यायालय ने पूर्व में यह स्पष्ट किया था जो लोग इस योजना का लाभ नहीं उठा रहे है, उनसे अनिवार्य कटौती नहीं की जा सकती. सरकार को सभी नागरिकों को इस योजना में बने रहने या न बने रहने का विकल्प देना चाहिए |

इसके बाद सरकार द्वारा 7 जनवरी को विकल्प सम्बन्धी एक विज्ञप्ति निकली गयी, परन्तु, पुनः 25 अगस्त 2022 से सरकार ने उन लोगो से भी कटौती कर ली जिन्होंने यह विकल्प पत्र नहीं भरा था और जिन्होंने इस स्वस्थ्य सेवा का लाभ नहीं उठाया था| इसपर गणपत सिंह बिष्ट ने पुनः उच्च न्यायालय को अवगत कराया और फिर सरकार ने यह स्पष्ट किया की योजना में बने रहने या न बने रहने का सरकार केवल एक बार विकल्प नहीं निकाल सकती. यह विकल्प सरकार को जब जो चाहे योजना में आना चाहे या जाना चाहे, उसकी इच्छा अनुसार होना चाहिए.

अधिवक्ता अभिजय नेगी ने बताया कि सरकार की कठिनाई को भी समझते हुए कि इससे पेंशन से कटौती से बार बार चिन्हित करना पड़ेगा, माननीय उच्च न्यायलय ने आदेश दिया की यह विकल्प की वह योजना में बने रहना चाहते है या नहीं सरकार को वार्षिक रूप से एक बार सभी नागरिकों को देना होगा, जिसके बाद ही उनसे कटौती की जा सकेगी | गौरतलब है कि सरकार द्वारा वरतनमन में केवल योजना से जुड़ने का विकल्प दिया गया था जबकि योजना से बाहर जाने का विकल्प केवल एक बार मौका देकर देकर समाप्त कर गया था, जो अब पुनः जीवित हो गया है| इससे पेंशन धारको में खुशी की लहर है क्यूंकि अब स्वस्थ सेवाओं के अनुरूप वह योजना में बने रहने अथवा उससे बाहर जाने का विकप्ल भर सकते है. माननीय उच्च न्यायालय ने नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करते हुए यह भी स्पष्ट किया है की जिन लोगो ने ना का विकप्ल भरा है, वह कटी हुई धनराशि का प्रतिदाय करवाने के लिए अलग से याचिका दाखिल कर सकेंगे.