नैनीताल– उत्तराखण्ड में महिला को मिले क्षैतिज आरक्षण कर फिर संकट मंडराने लगा है। सिर्फ राज्य की महिलाओं को नौकरी में 30 प्रतिशत आरक्षण देने को उत्तराखंड हाई कोर्ट के चुनौती मिली है। चीफ जस्टिस विपिन सांघी व जस्टिस राकेश थपलियाल की कोर्ट ने बुधवार को मामले पर सुनवाई करते हुए सरकार समेत सभी पक्षकारों को नोटिस जारी किया है और 6 हफ्तों में जवाब मांगा है। इसके साथ कोर्ट ने महाधिवक्ता को भी नोटिस देने का याचिकाकर्ता को आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा है कि इस दौरान नियुक्ति प्रक्रिया जारी रखी जा सकती है लेकिन आरक्षण रिट याचिका के अंतिम निर्णय के अधीन रहेगा। अगर हाई कोर्ट आने वाले दिनों में फिर महिलाओं को मिलने वाले इस आरक्षण को असंवैधानिक घोषित कर देता है तो ये राज्य के लिए बड़ा झटका होगा।
आपको बतादें कि काजल तोमर ने याचिका दाखिल कर उत्तराखण्ड लोक सेवा में महिलाओं को क्षैतिज आरक्षण को चुनौती दी है..याचिका में कहा गया है कि वो इंजीनियरिंग सेवा परिक्षा में राज्य की महिलाओं को आरक्षण दिया जा रहा है जो असंवैधानिक है। दरअसल 2001 और 24 जुलाई 2006 से राज्य में महिलाओं को आरक्षण दिया गया ..सरकार के इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती मिली तो हाईकोर्ट ने इस आरक्षण को असंवैधानिक करार दे दिया..सरकार सुप्रीम कोर्ट गई तो कोर्ट ने रोक लगा दी इसी बीच सरकार एक्ट लेकर आ गई जिसको अब हाईकोर्ट में फिर चुनौती मिली है। उत्तराखंड हाई कोर्ट के अधिवक्ता कार्तिकेय हरि गुप्ता बताते हैं कि पहले 2001 और 2006 के जीओ को हाई कोर्ट ने असंवैधानिक घोषित कर दिया लेकिन सरकार एक्ट लेकर आई है हमने कोर्ट को कहा है कि एक्ट लेन का अधिकार उत्तराखंड विधानसभा को नहीं है जबकि संसद से ऐसा कानून बनाया जा सकता है,कार्तिकेय हरि गुप्ता कहते हैं कि संविधान के अनुच्छेद 16 के तहत राज्य आरक्षण नहीं दे सकता है ये अधिकार देश की संसद को है